दिपावली पूजन पद्धति - Mvf
दिपावली पूजन पद्धति - Mvf
दिपावली पूजन पद्धति - Mvf
॥ अनुक्रमार्णका ॥
❖ शब्द उत्पर्ि दीपावली शब्द की उत्पत्ति सस्ं कृ त के दो शब्दों 'दीप' अर्ाात 'त्तदया' व 'आवली' अर्ाात
'लाइन' या 'श्ृंखला' के त्तिश्ण से हुई है।
॥ दीपावली महत्व ॥
❖ शुभ दीपावली पांच र्दन मनायी जाती है
1. धनतेरस के त्तदन धनवतं री देवता के पज
ू न का त्तवधान होता है, त्तहन्दू िान्यता के अनसु ार इस त्तदन टूटे फूटे बतान
बदलने और नए बतान खरीदने का त्तवधान है। इस त्तदन लोग चादं ी, सोना, प्लेत्तटनि, रत्न आत्तद खरीदते है।
2. रूपचौदस / नरक चतुदिशी / छोटी दीवाली के रूप िें दसू रे त्तदन ब्रह्म िुहूता िें जाग कर स्नान करने का िहत्त्व
होता है। ित्तहलाये इसत्तदन सोलह श्ृंगार करती है, िेहंदी आत्तद लगाकर अपने आप िें उत्सात्तहत होती है।
3. अमावस्या तीसरे त्तदन िाता िहालक्ष्िी जी का पूजन रात्ति काल िें िहत्वपूणा होता है। इस त्तदन िाता का पूजन
करके अपनी साडी धन, संपत्ति िाता को सौप देते है। तेल के दीपक और घी के दीपक जलाकर िाता को प्रसन्न
करते है। उत्साह वश फटाखे आत्तद फोड़ते है। एक दसू रे को बधाईयां देते है, और शुभता त्तक कािनाये करते है।
4. माता अन्नपूणाि चौर्े त्तदन आकूत का पूजन और गोवधान पूजन करते है तात्तक सदा अन्न का भण्डार भरा रहे ।
कुछ लोग इसत्तदन त्तचरैयागौर का पजू न िौन रहकर भी करते है।
5. भाई-दूज पांचवे त्तदन भाई - बहनो का पत्तवि पवा िानते है
❖ धनतेरस और दीपावली में दीप दान मंत्र मृत्युना पाशदण्डाभ्याम् कालेन श्यामया सह ।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूयिजः प्रीयतां मम ॥
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कार्तिक कृ ष्ण धनत्रयोदशी - 25.10.2019 र्दपावली पूजन पद्धर्त
॥ पूजन प्रारम्भ ॥
❖ पृथ्वी ध्यानम् ॐ पृर्थ्व त्वया धृता लोका देर्व त्वं र्वष्णुना धृता ।
त्वं च धारय मां देर्व पर्वत्रं कुरु चासनम् ॥
• ॐ मही द्ौः पृर्र्वी च न इमं यज्ञ र्मर्मिताम् । र्पपत ृ ान्नो भरीमर्भः ॥
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कार्तिक कृ ष्ण धनत्रयोदशी - 25.10.2019 र्दपावली पूजन पद्धर्त
॥ गणेश जी की आरती ॥
❖ जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा, माता जाकी पाविती, र्पता महादेवा ॥
❖ एक दंत दयावंत चार भुजाधारी । मस्तक र्संदूर सोहे, मुसे की सवारी ॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा, माता जाकी पाविती, र्पता महादेवा ॥
❖ पान चढे फूल चढे और चढे मेवा। लड्डुवन का भोग लगे, संत करे सेवा ॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा, माता जाकी पाविती, र्पता महादेवा ॥
❖ अंधन को आंि देत, कोर्ढयन को काया। बांझन को पुत्र देत, र्नधिन को माया ॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पाविती, र्पता महादेवा ॥
॥ लक्ष्मीजी की आरती ॥
❖ ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता
तुमको र्नसर्दन सेवत, हर र्वष्णु र्वधाता ॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
❖ उमा, रमा, र्ब्म्हाणी, तमु जग की माता
सयू ि चद्रमं ा ध्यावत, नारद ऋर्ष गाता ॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
❖ दुगािरूप र्नरंजन, सि
ु संपर्ि दाता
जो कोई तुमको ध्याता, ऋर्द्ध र्सद्धी धन पाता ॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
❖ तमु पाताल र्नवासनी, तुम ही शभु दाता
कमिप्रभाव प्रकाशनी, भवर्नर्ध की त्राता ॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
❖ र्जस र्र तुम रहती, तहाँ सब सद्गुण आता
सब सभवं हो जाता, मन नहीं र्बराता ॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
❖ तमु र्बन यज्ञ ना होते, वस्त्र न हो पाता
िान पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
❖ शभ ु गण
ु मर्ं दर, सदुं र िीरर्नर्ध जाता
रत्न चतदु िश तमु र्बन, कोई नहीं पाता ॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
❖ महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई नर गाता
उर आंनद समाता, पाप उतर जाता ॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
॥ श्री सूक्त ॥
❖ र्हरण्यवणां हररणीं सुवणिरजतिजाम् ।
चन्द्रां र्हरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ।।१।।
❖ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगार्मनीम् ।
यस्यां र्हरण्यं र्वन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥२॥
❖ अश्वपूवां रर्मध्यां हर्स्तनादप्रबोर्धनीम् ।
र्श्रयं देवीमुपह्वये श्रीमाि देवी जुषताम् ॥३॥
❖ कां सोर्स्मतां र्हरण्य प्राकारामाद्रां ज्वलन्तीं तृिां तपियन्तीम् ।
पद्मेर्स्र्तां पद्मवणां तार्महोपह्वये र्श्रयम् ॥४॥
❖ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलतं ीं र्श्रयं लोके देवजष्टु ामदु ाराम् ।
तां पर्द्मनीं शरणमहं प्रपद्े अलक्ष्मीमे नश्यतां त्वां वण ृ े ॥५॥
॥ लक्ष्मी सूक्त ॥
❖ पद्मानने पद्मर्वपद्मपत्रे पद्मर्प्रये पद्मदलायतार्ि ।
र्वश्वर्प्रये र्वश्वमनोनुकूले त्वत्पादपद्मं मर्य सं र्नधत्स्व ॥१॥
❖ पद्मानने पद्म ऊरू पद्मािी पद्मसम्भवे ।
तन्मेभजर्स पद्मािी येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥२॥
❖ अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने ।
धनं मे जुषतां देर्व सविकामांश्च देर्ह मे ॥३॥
❖ पुत्रपौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वार्दगवेरर्म् ।
प्रजानां भवर्स माता आयुष्मन्तं करोतु मे ॥४॥
❖ धनमर्ग्नधिनं वायध ु िनं सयू ो धनं वसःु ।
धनर्मन्द्रो बृहस्पर्तविरुणं धनमस्तु ते ॥५॥
❖ वैनतेय सोमं र्पब सोमं र्पबतु वृत्रहा ।
सोमं धनस्य सोर्मनो मह्यं ददातु सोर्मनः ॥६॥
❖ न क्रोधो न च मात्सयं न लोभो नाशुभा मर्तः।
भवर्न्त कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत् ॥७॥
❖ सरर्सजर्नलये सरोजहस्ते धवलतराश ं कु गन्धमाल्यशोभे।
भगवर्त हररवल्लभे मनोज्ञे र्त्रभुवनभूर्तकरर प्रसीद मह्यम् ॥८॥
❖ र्वष्णुपत्नीं िमादेवीं माधवीं माधवर्प्रयाम् ।
लक्ष्मीं र्प्रयसिीं देवीं नमाम्यछयतु वल्लभाम् ॥९॥
❖ महालक्ष्मी च र्वद्महेर्वष्णुपत्नी च धीमर्ह ।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥१०॥
❖ चन्द्रप्रभां लक्ष्मीमेशानीं सयू ाि भालं क्ष्मीमैश्वरीम् ।
चन्द्र सूयािर्ग्नसकं ाशां र्श्रयं देवीमुपास्महे ।।११।।
❖ श्रीवचिस्वमायुष्यमारोग्यमार्वधाछछोभमानं महीयते ।
धान्यं धनं पशुं बहपु त्रु लाभं शतसवं त्सरं दीर्िमायःु ॥१२॥
॥ कनकधार स्तोत्रम् ॥
❖ अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती, भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृतार्िलर्वभूर्तरपाङ्गलीला, माङ्गल्यदाऽस्तु मम मङ्गलदेवतायाः॥१॥
❖ मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः, प्रेमत्रपाप्रर्णर्हतार्न गतागतार्न ।
माला दृशोमिधुकरीव महोत्पले या, सा मे र्श्रयं र्दशतु सागरसंभवायाः ॥२॥
❖ र्वश्वामरेन्द्रपदर्वभ्रमदानदिं, आनन्दहेतुरर्धकं मुरर्वर्िषोऽर्प ।
ईषर्न्नषीदतु मर्य िणमीिणाधिम,् इन्दीवरोदरसहोदरर्मर्न्दरायाः ॥३॥
❖ आमीर्लतािमर्धगम्य मुदा मक ु ु न्दं, आनन्दकन्दमर्नमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आके करर्स्र्तकनीर्नकपक्ष्मनेत्रं, भूत्यै भवेन्मम भज
ु ङ्गशयाङ्गनायाः ॥४॥
❖ बाह्वन्तरे मधुर्जतः र्श्रतकौस्तुभे या, हारावलीव हररनीलमयी र्वभार्त ।
कामप्रदा भगवतोऽर्प कटािमाला, कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥५॥
❖ कालाम्बदु ार्ललर्लतोरर्स कै टभारेः, धाराधरे स्फुरर्त या तर्डदङ्गनेव ।
मातुस्समस्तजगतां महनीयमूर्तिः, भद्रार्ण मे र्दशतु भागिवनन्दनायाः ॥६॥
❖ प्रािं पदं प्रर्मतः िलु यत्प्रभावात्, माङ्गल्यभार्ज मधुमार्र्र्न मन्मर्ेन ।
मय्यापतेिर्दह मन्र्रमीिणाधं, मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥७॥
❖ दद्ाद्दयानुपवनो द्रर्वणाम्बुधारां, अर्स्मन्नर्कजचनर्वहङ्गर्शशौ र्वषण्णे ।
दुष्कमिधमिमपनीय र्चराय दूर,ं नारायणप्रणर्यनीनयनाम्बुवाहः ॥८॥
❖ इष्टार्वर्शष्टमतयोऽर्प यया दयाद्रि-, दृष्ट्या र्त्रर्वष्टपपदं सुलभं लभन्ते ।
दृर्ष्टः प्रहृष्टकमलोदरदीर्िररष्टा,ं पर्ु ष्टं कृषीष्ट मम पुष्करर्वष्टरायाः ॥९॥
❖ गीदेवतेर्त गरुडध्वजसन्ु दरीर्त, शाकम्भरीर्त शर्शशेिरवल्लभेर्त ।
सृर्ष्टर्स्र्र्तप्रलयके र्लषु संर्स्र्तायै, तस्यै नमर्स्त्रभवु नैकगुरोस्तरुण्यै ॥१०॥
❖ श्रत्ु यै नमोऽस्तु शभ
ु कमिफलप्रसत्ू यै, रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगणु ाणिवायै ।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रर्नके तनायै, पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोिमवल्लभायै ॥११॥
❖ नमोऽस्तु नालीकर्नभाननायै, नमोऽस्तु दुग्धोदर्धजन्मभम्ू यै ।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै, नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥१२॥
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कार्तिक कृ ष्ण धनत्रयोदशी - 25.10.2019 र्दपावली पूजन पद्धर्त
॥ महालक्ष्मी अष्टकम् ॥
❖ नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूर्जते । शङ्ि चक्र गदा हस्ते महालर्क्ष्म नमोस्तु ते ॥१॥
❖ नमस्ते गरुडारूढे कोलासुर भयङ्करर । सविपाप हरे देर्व महालर्क्ष्म नमोस्तु ते ॥२॥
❖ सविज्ञे सविवरदे सविदुष्ट भयङ्करर । सविदु:ि हरे देर्व महालर्क्ष्म नमोस्तु ते ॥३॥
❖ र्सर्द्ध बर्ु द्धप्रदे देर्व भर्ु क्त मर्ु क्त प्रदार्यर्न । मन्त्रमतु े सदा देर्व महालर्क्ष्म नमोस्तु ते ॥४॥
❖ आद्न्तर र्हते देर्व आद् शर्क्त महेश्वरर । योगजे योगसम्भतू े महालर्क्ष्म नमोस्तु ते ॥५॥
❖ स्र्लू सक्ष्ू म महारौद्रे महाशर्क्त महोदरे । महापाप हरे देर्व महालर्क्ष्म नमोस्तु ते ॥६॥
❖ पद्मासनर्स्र्ते देर्व परर्ब्ह्म स्वरूर्पर्ण । परमेर्श जगन्मातमिहालर्क्ष्म नमोस्तु ते ॥७॥
❖ श्वेताम्बरधरे देर्व नानालङ्कार भूर्षते । जगर्त्स्र्ते जगन्मातमिहालर्क्ष्म नमोस्तु ते ॥८॥
❖ महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठे िर्क्तमान्नर: । सविर्सर्द्धमवाप्नोर्त राज्यं प्राप्नोर्त सविदा ॥९॥
❖ एककाले पठे र्न्नत्यं महापापर्वनाशनम् । र्िकालं य: पठे र्न्नत्यं धनधान्यसमर्न्वत: ॥१०॥
❖ र्त्रकालं य: पठे र्न्नत्यं महाशत्रुर्वनाशनम् । महालक्ष्मीभिवेर्न्नत्यं प्रसन्ना वरदा शभ ु ा ॥११॥
॥ इर्त इन्द्र कृतम् महालक्ष्म्यष्टकम् सम्पूणिम् ॥
धनतेरस की कर्ा
एक त्तकवदन्ती के अनुसार एक राज्य िें एक राजा र्ा, कई वषों तक प्रत्ततक्षा करने के बाद, उसके यहां पुि
संतान त्तक प्रात्तप्त हुई. राजा के पिु के बारे िें त्तकसी ज्योत्ततषी ने यह कहा त्तक, बालक का त्तववाह त्तजस त्तदन भी होगा,
उसके चार त्तदन बाद ही इसकी िृत्य ् ु हो जायेगी.
ज्योत्ततषी की यह बात सुनकर राजा को बेहद द:ु ख हुआ, ओर ऎसी घटना से बचने के त्तलये उसने राजकुिार
को ऎसी जगह पर भेज त्तदया, जहां आस-पास कोई स्त्री न रहती हो, एक त्तदन वहां से एक राजकुिारी गुजरी, राजकुिार
और राजकुिारी दोनों ने एक दसू रे को देखा, दोनों एक दसू रे को देख कर िोत्तहत हो गये, और उन्होने आपस िें त्तववाह
कर त्तलया.
ज्योत्ततषी की भत्तवष्ट्यवाणी के अनसु ार िीक चार त्तदन बाद यिदतू राजकुिार के प्राण लेने आ पहुच ं .ें यिदतू को
देख कर राजकुिार की पत्नी त्तवलाप करने लगी. यह देख यिदतू ने यिराज से त्तवनती की और कहा की इसके प्राण
बचाने का कोई उपाय बताईयें. इस पर यिराज ने कहा की जो प्राणी कात्तताक कृ ्ष्ट्ण पक्ष की ियोदशी की रात िें जो
प्राणी िेरा पूजन करके दीप िाला से दत्तक्षण त्तदशा की ओर िुंह वाला दीपक जलायेगा, उसे कभी अकाल िृत्यु का भय
नहीं रहेगा. तभी से इस त्तदन घर से बाहर दत्तक्षण त्तदशा की ओर दीप जलाये जाते है.
करता है, प्रत्ततत्तदन सूयोदय से पहले जागता है, और सिय से सोता है, दीन- दत्तु खयों, अनार्ों, वृि, रोगी और
शत्तिहीनों को सताते नहीं है । अपने गरुु ओ ं की आज्ञा का पालन करता है. त्तििों से प्रेि व्यवहार करता है. आलस्य,
त्तनद्रा, अप्रसन्नता, असतं ोष, कािक ु ता और त्तववेकहीनता आत्तद बरु े गणु त्तजसिें नहीं होते है. उसी के यहां िैं त्तनवास
करती हूाँ. इस प्रकार यह स्पष्ट है त्तक लक्ष्िी जी के वल वहीं स्र्ायी रुप से त्तनवास करती है, जहां उपरोि गणु यिु व्यत्ति
त्तनवास करते है ।
अन्नकूट पवि
अन्नकूट पवा भी गोवधान पवा से ही सबं त्तन्धत है. इस त्तदन 56 प्रकार की सत्तब्जयों को त्तिलाकर एक भोजन
तैयार त्तकया जाता है, त्तजसे 56 भोग की सज्ञं ा दी जाती है. यह पवा त्तवशेष रुप से प्रकृ त्तत को उसकी कृ पा के त्तलये
धन्यवाद करने का त्तदन है. इस िहोत्सव के त्तवषय िें कहा जाता है त्तक इस पवा का आयोजन व दशान करने िाि से
व्यत्ति को अन्न की किी नहीं होती है. उसपर अन्नपूणाा की कृ पा सदैव बनी रहती है ।
अन्नकूट एक प्रकार से सािूत्तहक भोज का त्तदन है. इसिें पूरे पररवार, वंश व सिाज के लोग एक जगह बनाई
गई रसोई को भगवान को अपान करने के बाद प्रसाद स्वरुप ग्रहण करते है. काशी के लगभग सभी देवालयों िें कात्तताक
िास िें अन्नकूट करने त्तक परम्परा है. काशी के त्तवश्वनार् िंत्तदर िें लड्डूओ ं से बनाये गये त्तशवालय की भव्य झांकी के
सार् त्तवत्तवध पकवान बनाये जाते है ।
लगाकर कद्दु के फूल, पान, सुपारी, िुद्रा आत्तद हार्ों पर रख कर धीरे धीरे हार्ों पर पानी छोडते हुए िंि बोला जाता है
। ओर भाईयों त्तक आरती उतारती है. भाई को िाखन - त्तिश्ी त्तखलाती है. भाई अपनी बहन को उपहार देते है.
सध्ं या के सिय बहनें यिराज के नाि से चौिख ु दीया जलाकर घर के बाहर दीये का िख ु दत्तक्षण त्तदशा की ओर
करके रख देती है. देश के अलग- अलग त्तहस्सो िें इस परम्परा िें कुछ न कुछ अतं र आ ही जाता है ।