Dhyaan (Hindi)
Dhyaan (Hindi)
Dhyaan (Hindi)
अनुवादक
हरीश, श
Dhyaan
Hindi translation of ‘Meditations’ Author : J. Krishnamurti
Translated by Harish, Shakti
For the original English Text
© Krishnamurti Foundation Trust Ltd., Brockwood Park,
Bramdean, Hampshire SO24 0LQ, England
For the Hindi Transslaiton
© Krishnamurti Foundation India
Vasant Vihar, 124-126, Greenways Road, Chennai-600 028
जे. कृ णमू त
संकलन : ईव लन लाउ
ा कथन
यान व तुतः जीवन से कुछ अलग नह है। यह जीवन का ही सार है, त दन के जीने
का ही नचोड़ है। र कह बजती उन घं टय को यानपूवक सुनना, अपनी प नी के साथ
राह चलते उस कसान क उ मु हंसी को सुनना, साइ कल पर भागी जा रही उस
छोट -सी लड़क के घंट बजाने को यानपूवक सुनना— यान जीवन का यह सम त प
है, इसका एक खंड मा नह । ऐसा यान आपको जीवन क सम ता के त उ मुख कर
दे ता है।
‘जो है’ उसे दे खना और उसके पार चले जाना ही यान है।
श द के बना दे खना अथात न वचार अवलोकन अ यंत वल ण घटना म से एक
है। य क तब अवलोकन अ य धक ती और सघन होता है—अवलोकन क इस या
म न केवल म त क ब क सारी इं यां भाग लेती ह। यह अवलोकन बु ारा कया
गया आं शक और खं डत अवलोकन नह है, न ही यह कोई भावना का मामला है।
इसे सम अवलोकन कहा जा सकता है, और यह यान का अंग है। यान म बोधकता से
र हत बोध असीम क ऊंचाई और गहराई के साथ होने वाला संवाद है। यह बोध कसी
व तु को ‘ ा के बना दे खने’ क या से सवथा भ है, य क यान के बोध म न
कोई वषय होता है और इस लए न कोई अनुभव। ले कन यान तब भी घ टत हो सकता
है जब आंख खुली ह और आप तमाम तरह के य से घरे ह । हालां क तब ये य
और व तुएं कोई मह व नह रखत । आप उ ह दे खते ह, ले कन यह दे खना पहचानने क
या नह है। इसका अथ है क वहां कुछ अनुभव नह कया जाता।
ऐसे यान का या अथ है? कोई अथ नह है; कोई उपयो गता नह है। कतु उस यान म
परम हष और आ ाद का पंदन है, जसक तुलना सुख से, मनो वलास से नह क जा
सकती। यह आ ाद म त क को, दय को एवं आंख को नद षता क गुणव ा दान
करता है। जीवन को जब तक सम तः एक नयी घटना क तरह नह दे ख लया जाता,
तब तक यह बंधी-बंधायी दनचया, ऊब और एकरसता का एक नरथक सल सला बना
रहता है। अतः यान का मह व महानतम है। यह असीम और अनंत क ओर ार खोल
दे ता है।
यान समय के आयाम के भीतर कतई नह है। समय उ ां त को ज म नह दे
सकता। समय केवल ऐसा बदलाव ला सकता है जसम पुनः फेर-बदल क आव यकता
पड़ती है—सभी सुधार का यही हाल होता है। समयज य यान केवल बंधन न मत कर
सकता है, मु नह । और मु के बना चयन और ं सदै व बना रहता है।
हम समाज क संरचना को बदलना होगा। इसम ा त अ याय, वकृत नै तकता, यु ,
मनु य और मनु य के बीच पैदा कये गये वभाजन, नेह और ेम का सवथा अभाव—
यही सब व के वनाश का कारण है। अगर यान केवल आपका गत मामला है,
एक ऐसी चीज़ है जो आपके गत सुख और मौज का साधन है तो यह यान नह है।
यान का अथ है, दय और मन का आमूल प रवतन। यह तभी संभव है जब आंत रक
मौन का वह असाधारण एहसास हो—और यही एहसास धा मक मन को ज म दे ता है।
ऐसा मन उसे जानता है जो परम पुनीत है।
हम साथ-साथ यह अ वेषण कर रहे ह क या आप और म इसी ण पूरी तरह बदल
सकते ह तथा एक सवथा व भ आयाम म वेश कर सकते ह—और इसम यान क
भू मका है। यान एक ऐसी थ त है जो अ य धक ा, संवेदनशीलता, ेम और स दय
के साम य क मांग करती है—यह कसी गु ारा आ व कृत कसी णाली का
अनुसरण मा नह है।
यान करने का अथ है, समय के त अबोध हो जाना।
यान संसार से पलायन नह है। यह वयं को सम त से अलग करने या अपने आपको
चार ओर से बंद करने क या नह है, ब क यह संसार और इसके तौर-तरीक क
समझ है। संसार हम भोजन, व , आवास तथा सुख एवं इससे जुड़े अनंत ख के
सवाय और दे ही या सकता है!
आकाश अ यंत नीला है, वह नी लमा जो वषा के बाद कट होती है। और यह वषा कई
महीन के सूखे के बाद आयी है। वषा के बाद आकाश धुलकर साफ हो गया है और
पहा ड़यां आनंद वभोर हो रही ह, तथा धरती चुप है। पेड़ के प े-प े पर सूय क करण
चमक रही ह और धरती का एहसास आप अ यंत नकटता से कर रहे ह। तो आप अपने
दय और मन के उन गु त थान और कोन म जाकर यान कर जहां इसके पूव आप
कभी नह गये ह।
यान कसी सा य का साधन नह है। वहां न कोई मं ज़ल है, न कह प ंचना है। वह
एक ऐसी ग त व ध है जो समय के आयाम म शु होकर समय के पार चली जाती है।
यान क हर व ध और प त वचार को समय के साथ बांध दे ती है, परंतु हर वचार,
हर भाव के त न प सजगता के साथ उसक या और उसके पीछे कायरत
ेरणा को समझना और साथ ही हर वचार और भाव को वतं तापूवक फलने-फूलने
और वक सत होने दे ना यान का आरंभ है। जब वचार और भाव पूण प से वक सत
होकर तरो हत, मृत हो जाते ह, तब यान समय के पार क एक ग त व ध है। इस
ग त व ध म एक परम आ ाद है; इस पूण शू यता म ेम है, और वहां ेम है वहां व वंस
और सृजन है।
यान मन के भीतर क वह यो त है जो या के माग को आलो कत करती है। और
इस यो त के बना ेम का कोई अ त व नह है।
यान का अथ ाथना कतई नह है। ाथना-याचना आ म-दयनीयता क उपज है।
जब आप कसी क और मुसीबत म होते ह, जब आप पर कोई संकट आता है, तभी
आप ाथना करते ह, ले कन जब आपके चार ओर स ता और सुख-चैन होता है, तो
वहां कोई याचना नह होती। यह आ म-दयनीयता जो मनु य के भीतर इतनी गहराई म
बैठ ई है, यही हर तरह के अलगाव का कारण है। और वह जो अलग है या अपने को
अलग समझता है, वह हमेशा कसी ऐसी चीज़ के साथ अपने तादा य क तलाश म
रहता है जो उससे अलग न हो, और इस यास म वह अ धका धक वभाजन और ख
ही पैदा करता है। इस दशा और उप व से घबराकर वह कसी परमे र क पुकार और
गुहार करने लगता है या अपने प त क या मन के बनाये कसी दे वी-दे वता क । इस
पुकार का कोई उ र मल भी सकता है, ले कन वह उ र अलगाव करने वाली आ म-
दयनीयता क ही त व न होगी।
वचार भाव को ख म कर डालता है—भाव यानी ेम। वचार केवल सुख दान कर
सकता है, और सुख क खोज म ेम क उपे ा हो जाती है। खाने और पीने का जो सुख
है उसका सात य वचार बनाए रखता है, इस लए वचार ारा संपो षत इस सुख का मा
दमन और नयं ण नरथक है—यह केवल तमाम तरह के ं और दबाव पैदा करेगा।
यान व तुतः अ यंत सरल है। ज टल इसे हम बना दे ते ह। हम इसके आसपास वचार
और धारणा का जाल बुन लेते ह—यह या है और यह या नह है। ले कन यान
इनम से कुछ भी नह है। चूं क यह अ यंत सरल है, यह हमारी समझ म नह आता
य क हमारा मन अ य धक ज टल, समय के थपेड़ से जजर और समय के घेरे म बंद
है। और यही मन दय क ग त व ध नधा रत करता है, इस लए तब क ठनाई शु हो
जाती है। ले कन यान का आगमन तो सहज प से होता है, अ यंत सुगमता के साथ,
जब आप बाहर रेत पर टहल रहे होते ह या खड़क से बाहर दे ख रहे होते ह या पछली
ग मय क धूप से झुलस गयी उन अद्भुत पहा ड़य का अवलोकन कर रहे होते ह। हम
ऐसे पी ड़त और थत मनु य य ह, आंख म आंसू और ह ठ पर झूठ मु कान लए
ए? अगर आप उन पहा ड़य म, जंगल म अकेले घूमने जाय या र तक फैले ए ेत
बालू के कनारे- कनारे अकेले टहलते चले जाय, तो उस एकांत म आपको मालूम होगा
क यान या है।
उसके आगे कोई भी श द, कोई भी वणन कसी काम का नह है। तब मन परम और पूण
क खोजबीन नह करता, वह अब सभी आव यकता से मु है— य क उस मौन म
वह ा त है ‘जो है’। और यह संपूण प से यान का साद और आशीष है।
वषा के बाद पहा ड़यां भ और मनोरम हो गयी थ । ग मय क तेज धूप के कारण
उनका भूरा रंग अभी भी शेष था, ले कन अब शी ही उन पर ह रयाली छा जायेगी। इस
भीषण वषा के बाद उन पहा ड़य का स दय अवणनीय था। आकाश अब भी बादल से
घरा आ था और हवा म सूमैक, सेज और युके ल टस के पेड़ से आती ई गंध तैर रही
थी। उनके बीच होना बड़ा भ -सा लग रहा था, और एक अद्भुत थरता ने आपको
चार ओर से घेर लया था।
यान का अथ और-और अनुभू तयां कदा प नह है। अथात् यान अनुभव का सात य
नह है। अनुभव जो हर छोट -बड़ी चुनौती के उ र से न मत होता है, यान केवल
उसका अंत नह है, ब क यह सार-त व क ओर ार का खुलना है, यह उस वालामुखी
के मुंह का खुलना है जसक वाला जला डालती है, इतनी पूणता से क राख और भ म
भी नह बचती, कोई भी अवशेष नह बचता। अवशेष तो हम वयं ह। हम बीते ए
हज़ार कल के ‘हां म हां मलानेवाले’ ह। हम अनंत मृ तय तथा पसंद-नापसंद और
नराशा क एक सतत शृंखला ह। सम व और व, ये दोन हमारे अ त व का
सांचा-ढांचा ह, और अ त व वचार है तथा वचार अ त व, और इसी म न हत है कभी
न मटने वाला ख।
यान ऐसा अवधान, ऐसा होश है जसम कोई अंकन नह होता। आम तौर से म त क
लगभग सब कुछ अं कत करता है, आवाज़ को, इ तेमाल कये जा रहे श द को यह
कसी टे प क तरह अं कत करता रहता है। अब, या म त क के लए संभव है क जो
अं कत करना पूरी तरह ज़ री है, उसे छोड़ कर और कुछ भी अं कत न करे। मुझे कोई
अपमान य अं कत करना चा हए? यह अनाव यक है। मुझे कसी भी तरह का आहत
होना य अं कत करना चा हए? इस लए वही अं कत कर जो क दै नक जीवन म काय
करने के लए आव यक है—एक तकनी शयन, एक लेखक इ या द के तौर पर— कतु
मनोवै ा नक तौर पर कुछ भी अं कत न कर। यान म मनोवै ा नक प से कुछ भी
अं कत नह होता, बस जीवन के ावहा रक त य —कायालय जाना, फै टरी म काम
करना इ या द—के अ त र कोई अंकन नह होता। अ य कुछ भी अं कत नह होता।
इससे पूण मौन का आगमन होता है य क वचार का अंत हो चुका है— सवाय इसके
क यह केवल तभी काम करे जहां यह पूरी तरह से आव यक हो। समय का अंत हो चुका
है, और एक पूरी तरह से भ कार क ग तशीलता है, मौन क ग तशीलता।
या आप सजगता का अ यास कर सकते ह? य द आप सजगता का ‘अ यास’ कर
रहे ह, तो आप अनवधान म ह, असावधान ह। तो इस असावधानता के त सजग हो
जाएं, आपको कसी अ यास क दरकार नह पड़ेगी। आपको बमा, चीन, भारत जैसी
जगह पर नह जाना पड़ेगा, जो रोमानी तो ह, पर त या मक नह । मुझे याद आता है क
भारत म एक बार म कुछ लोग के साथ कार म सफर कर रहा था। म आगे क सीट पर
ाइवर के साथ बैठा था। पीछे तीन बैठे थे जो सजगता के बारे म बात कर रहे थे,
मुझसे चचा करना चाह रहे थे क सजगता या है। कार ब त तेज़ी से जा रही थी। सड़क
पर कोई बकरी थी, ाइवर ने ब त यान नह दया और वह बेचारी कार के नीचे आ गई।
पीछे बैठे स जन अब भी सजगता पर चचा कर रहे थे, पर उनम से कसी को भी पता ही
नह चला क हो या गया था। आप हंस रहे ह, पर हम सब ऐसा ही तो कया करते ह।
यान के पूण अवधान म, पूरे होश म, जानना नह होता, न पहचानने क या होती
है, और न ही जो हो चुका है उसक मृ त होती है। समय और वचार का पूरी तरह
अवसान हो चुका होता है य क उनसे ही तो वह क बनता है जो वयं अपनी को
सी मत कर लेता है।
य द कसी को यान के बारे म कुछ भी मालूम नह है, तो उसे पता लगाना होगा क यह
या है—यह व तुतः या है, न क कसी के अनुसार, और तब हो सकता है क यह
को न-कुछ म ले जाये, या हो सकता है क यह उसे सब-कुछ म ले जाये। बना
कसी अपे ा के हम यह अ वेषण करना होगा, यह पूछना होगा।
हम म से अ धकतर के लए, सुंदरता कसी व तु म होती है, कसी इमारत म, बादल
म, पेड़ क आकृ त म, कसी खूबसूरत चेहरे म। या सुंदरता ‘वहां बाहर’ है, या यह उस
मन क गुणव ा है जसम कोई व-क त ग त व ध नह हो रही? य क आनंद क
तरह, स दय का बोध, उसक समझ भी यान म अ नवाय है।
यान है मन को सम त वचार से र करना, य क वचार तथा भाव ऊजा का
रण करते ह। वे दोहराव भर होते ह व यां क याकलाप को न मत करते ह जो क
अ त व का एक ज़ री ह सा है पर है वह एक ह सा ही, और वचार व भाव जीवन
क वराटता म संभवतः वेश नह कर सकते। एक नतांत भ , एक बलकुल
अलग तरह क प ंच आव यक है, आदत, साहचय और ात का माग नह , इस सबसे
तो मु होना होगा। यान मन को ात से र करना है। ऐसा वचार ारा या वचार के
छ संकेत ारा नह कया जा सकता, न ाथना के प म इ छा के मा यम से ऐसा
हो सकता है और न ही यह श द , छ वय , आशा व अह म यता के प म वयं को
भुला दे ने वाले स मोहन के ज़ रये संभव है। इन सब का तो सहजता से, बना कसी
यास, बना कसी चयन के, सजगता क लौ म अंत कर दे ना होता है।
केवल न ल मन ही यह समझ सकता है क मौन मन म एक ऐसी ग तशीलता होती
है जो बलकुल भ होती है। इसे कभी श द म नह कया जा सकता य क यह
अवणनीय है। जसका वणन हो सकता है वह उतना ही है जो आपको इस ब , इस
जगह तक ले आये जहां आपने न व रख द है और एक न ल मन क आव यकता,
उसका सच और उसका स दय दे ख लया है।
यान वतमान क नद षता है अतएव यह सदै व एकाक होता है। जो मन वचार से
अनछु आ, पूणतः एकाक होता है, संगृहीत करना बंद कर दे ता है। इस लए मन को र
करना हमेशा वतमान म होता है। जो मन एकाक है, उसके लए भ व य—जो क अतीत
का ही पहलू है— तरो हत हो जाता है। यान तो एक ग तशीलता है, न क कोई न प
या उपल ध करने हेतु कोई ल य।
या आपने दन के दौरान कभी बना कसी तम म के, बना कुछ सुधारे सावधान-
सचेत होने क , बना कसी चयन के सजग होने क , अपने वचार को, अपने योजन
को, आप या कह रहे ह, कैसे आप बैठे ह, श द को, संकेत को योग करने के अपने
तरीक को दे खने क —बस दे खने-मा क को शश क है?
या मन चुप हो सकता है? मुझे नह मालूम क जब आप इस सम या को दे खते ह,
जब आप इस उ कृ , सू म मन के होने क , जो पूरी तरह मौन है, आव यकता को,
इसके स य को दे खते ह, तो आप या करने वाले ह? ऐसा कैसे संभव हो? यही यान क
सम या है य क मा ऐसा मन ही धा मक मन है। केवल ऐसा मन ही पूरे जीवन को एक
इकाई के प म, एक संयु घटना के प म दे ख पाता है, खं डत प म नह । अतएव
केवल ऐसा मन ही संपूणता से कम करता है, वखं डत प से नह , य क ऐसे कम का
उद्गम पूण न लता से होता है।
या यह आमूल आंत रक ां त त ण हो सकती है? यह त ण हो सकती है जब
आप इस सब के खतरे को दे ख ल। यह ऐसा ही है जैसे कसी उ ुंग च ान के खतरे को,
कसी जंगली जानवर के, कसी सांप के खतरे को दे ख लेना; तब त काल कम होता है।
ले कन हम इस सारे वखंडन के खतरे को दे खते ही नह है जो तब खड़ा होता है जब
‘ व’, ‘म’ मह वपूण बन जाता है—और ‘म’ तथा ‘म नह ’ का वखंडन सामने आता है।
जस ण आपके भीतर वखंडन होता है, ं होता ही है; और ं ही वकृ त का,
ता का मूल है। अतः के लए यह आव यक है क वह यान के स दय का वतः
ही पता लगाये, य क तब मन वतं तथा सं कारमु होने के कारण उसका बोध कर
पाता है जो स य है।
यान व तुतः मन को पूरी तरह से र कर लेना है। तब केवल शरीर के काय होते
रहते ह; केवल शरीर क , अवयव-सं थान क ग त व ध जारी रहती है, उसके अ त र
और कुछ नह ; तब वचार ‘यह म’ और ‘यह म नह ’ से तादा य कये बना, पहचान
जोड़े बना काय करता है। वचार यां क होता है, जैसे क शरीर-संरचना यां क है। ं
इस बात से उ प होता है क वचार अपना तादा य अपने अंश म से एक के साथ कर
लेता है, अपनी पहचान उससे जोड़ लेता है, जो ‘म’, व और उस व के व वध वभाजन
बन जाते ह। व क कसी भी समय कोई आव यकता नह है। शरीर के अलावा और
कुछ नह है, और एक मु मन तभी संभव है जब वचार ‘म’ को ज म नह दे रहा होता।
हम अतीत के इस को वा तव म समझ लेना होगा—बीते कल के प म अतीत
आज के मा यम से, जो भी कल आ है उससे आने वाले कल को आकार दे ता रहता है।
या मन, जो समय का, म वकास का प रणाम है, अतीत से मु हो सकता है?
जसका अथ है मृत होना। केवल वही मन जो इस कार मृत होना जानता है, यान का
पश कर पाता है। इस सब को समझे बना, यान करने क को शश करना बचकानी
क पना मा है।
यान गंभीरतम चीज़ म से एक है। आप इसे पूरे दन कर सकते ह—कायालय म,
घर-प रवार म या जब आप कसी से कहते ह, “मुझे तुमसे ेम है”, या जब आप अपने
ब च के बारे म सोचते- वचारते ह। और तब आप पढ़ाने- लखाने के बाद उनका
रा ीयकरण कर दे ते ह, एक सै नक बना दे ते ह क जाओ, मारो-काटो, झंडे क पूजा
करो। आप उ ह पढ़ाते- लखाते ह ता क वे आधु नक जगत के कसी-न- कसी फंदे और
मोहजाल म आराम से समा जाय। इस सबका नरी ण करना, इसम अपनी भू मका को
दे खना और एहसास करना—ये सब यान के ही अंग ह। और जब इस तरह आप यान
करते ह, तो इसम आपको एक अपूव स दय का दशन होता है। तब हर ण आप स यक
ढं ग से काय करगे एवं जयगे, और अगर कसी खास ण आप ऐसा करने से चूक भी
जाय तो कुछ फक नह पड़ता, आप पुनः यान के छोर को पकड़ लगे—आप प ा ाप
म समय नह गंवायगे। यान जीवन का ही अंग है—जीवन से भ नह ।
नया के सफर के दौरान जब हम गरीबी क भयावह दशा को तथा मनु य के मनु य
से संबंध क कु पता को दे खते ह, तो यह बात सु प हो जाती है क एक पूण ां त का
घ टत होना आव यक है। एक भ कार क सं कृ त का अ त व म आना ज़ री है।
पुरानी सं कृ त करीब-करीब मर चुक है, तो भी हम इससे चपटे ए ह। जो युवा ह, वे
इसके खलाफ बगावत करते तो ह, परंतु भा य से उ ह मनु य के सारभूत वभाव
अथात मन को पांत रत करने का कोई ढं ग या कोई साधन नह मल पाया है। जब तक
एक गहन मान सक ां त नह होती, केवल प र ध म सुधार से कोई असर नह पड़ने
वाला है। यह मान सक ां त—जो मेरी म एकमा ां त है— यान के ारा ही
संभव है।
पूणतया कुछ न होने का अथ है मापन के पार हो जाना।
स दय का अथ है संवेदनशीलता—शरीर जो क संवेदनशील है, जसका ता पय है
सही आहार, जीने का सही तरीका, और आप अगर इतनी र तक आ गए ह तो आपके
जीवन म ऐसा होता ही है। मुझे उ मीद है क आप ऐसा करगे या कर ही रहे ह गे; तब मन
ला ज़मी तौर पर, सहज ही, अनजाने ही चुप हो जाता है। आप मन को खामोश कर नह
सकते य क आप ही तो उप व और शरारत क जड़ ह, आप वयं ही बेचैन, च तत,
द मत ह—आप कैसे मन को शांत कर सकते ह। परंतु जब आप समझ लेते ह क
खामोशी या है, जब आप समझ लेते ह क व म या है, ख या है और या ख का
कभी अंत हो सकता है, और जब आप समझ लेते ह क सुख, मनो वलास या है, तो
इस सारी समझ के चलते एक असाधारण प से मौन मन का आगमन होता है, आपको
इसे खोजना नह पड़ता। शु आत आपको शु से ही करनी होती है एवम् पहला कदम
ही आ खरी कदम होता है, और यही यान है।
अनुभव क अथव ा या है? या इसक कोई साथकता है? या अनुभव उस मन
को जगा सकता है जो सोया आ है, जो कुछ खास न कष तक प ंच चुका है तथा
व ास से सं कारब , उनक गर त म है? या अनुभव उसे जगा सकता है, इस सारे
ताने-बाने को व त कर सकता है? और या ऐसा मन—इतना सं कार त, अपनी ही
सम या , हताशा और ख से इतना बो झल— कसी चुनौती का यु र दे सकता
है? या यह ऐसा कर पाता है और य द ऐसा मन यु र दे ता भी है, तो या वह यु र
नाकाफ नह होगा और इस लए अ धका धक ं क ओर नह ले जाएगा?
ेम यान है। ेम कोई मृ त, वचार ारा सुख के प म कायम कोई छ व नह है, न
ही यह कता ारा न मत-पो षत कोई रोमानी छ व है; यह तो कुछ ऐसा है जो सम त
इं य के पार है, जीवन के सारे आ थक तथा सामा जक दबाव से परे है। इस ेम का
त ण बोध, इसी पल एहसास ही यान है, इस ेम क जड़ बीते कल म नह होत ;
इस लए क ेम स य है, और यान इस स य के स दय का अ वेषण है।
जब मा शरीर-सं थान, मनोदै हक संरचना हो, बना कसी व के, तो बोध कभी
वकृत नह हो सकता, चाहे वह बोध ज य हो या से परे का। केवल ‘जो है’ को
दे खना होता है और वही य बोध ‘जो है’ के पार चला जाता है। मन को र करना
वचार क ग त व ध अथवा बौ क या नह है। बना कसी तरह क वकृ त के ‘जो
है’ उसे लगातार दे खना ही सहज प से मन को सम त वचार से र कर दे ता है,
हालां क वही मन जब ज़ री हो तब वचार का इ तेमाल कर सकता है। वचार यां क है
तथा यान यां क नह है।
जब मन और म त क तथा शरीर म संपूण सुसंग त हो, सम वरता हो, तो वे मौन होते
ही ह—ऐसा मौन जसे कोई शामक औष ध ले लेने से या श द क आवृ से न मत
न कया गया हो, वह चाहे सं कृत का कोई श द हो या ‘आवेमा रया’ हो। दोहराने से तो
आपका मन मंद, सु त बन सकता है, और जो मन तं ा म है, वह स य को भला कैसे
खोज पाएगा। स य तो कुछ ऐसा है जो सारा समय नया होता है—श द ‘नया’ भी
उपयु नह है, यह तो व तुतः कालातीत, समय के पार होता है।
अनुवाद म पूरी सावधानी बरतने के बाद भी इसम कुछ ु टयां रह सकती ह; इसे बेहतर
बनाने क गुंजाइश तो हमेशा बनी रहती है। इस संबंध म कसी भी आलोचना या सुझाव
का हम वागत करगे और आगामी सं करण म अपे त प रवतन कये जा सकगे।
आपक ब मू य ट प णय क हम ती ा रहेगी।
अनुवादक
प - वहार का पता :
अनुवाद एवम् काशन को
कृ णमू त टडी सटर, के.एफ.आई.
राजघाट फोट, वाराणसी-221 001
tpcrajghat@gmail.com
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श ा या है?
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जीवन से संबं धत युवा मन के ऐसे अनेक पूछे-अनपूछे ह और जे. कृ णमू त क
रदश इन को मानो भीतर से आलो कत कर दे ती है, पूरा समाधान कर दे ती
है। ये श ा के बारे म ह, कतु सब एक- सरे से जुड़े ह।
दशन : सं कृ त : धम
यान
ई र या है?
जे. कृ णमू त क च चत और लोक य पु तक म एक पु तक है। यह पु तक उस पावन
परमा मा के लए हमारी खोज को के म रखती है।
श ा या है?
सोच या है?
सोचने- वचारने से अपनी सम याएं हल हो जाएंगी ऐसा मनु य का व ास रहा है, परंतु
वा त वकता यह है क वचार पहले तो वयं सम याएं पैदा करता है, और फर अपनी ही
पैदा क गई सम या को हल करने म उलझ जाता है। एक बात और, वचार करना
एक भौ तक या है। कृ णमू त प करते ह क वतं ता का, मु का ता पय है
के म त क पर आरो पत इस ‘ नयोजन’ से, इस ‘ ो ाम’ से मु होना। इसके
मायने ह अपनी सोच का, वचार करने क या का वशु अवलोकन; इसके मायने ह
न वचार अवलोकन—सोच क दखलंदाज़ी के बना दे खना। ‘अवलोकन अपने आप म
ही एक कम है’, यही वह ा है जो सम त ां त तथा भय से मु कर दे ती है।
थम और अं तम मु
इस पु तक म जे. कृ णमू त क अंत य का ापक व सारग भत प रचय तथा उनम
सहभा गता का चुनौती-भरा नमं ण ा त होता है। कृ णमू त क श ा के व वध
सरोकार का समावेश इस एक पु तक म उपल ध है जो अं ेज़ी पु तक ‘द फ ट एंड
ला ट डम’ का अनुवाद है। इस पु तक का काशन 1954 म आ था ले कन आज
भी यह पु तक कृ णमू त क सवा धक पढ़ जाने वाली पु तक म से एक है।