जैन प्रतीक चिन्ह
जैन धर्म |
---|
प्रार्थना |
मुख्य व्यक्तित्व |
जैन धर्म प्रवेशद्वार |
वर्ष १९७५ में भगवान महावीरस्वामी जी के २५००वें निर्वाण वर्ष अवसर पर समस्त जैन समुदायों ने जैन धर्म के प्रतीक चिह्न का एक स्वरूप बनाकर उस पर सहमति प्रकट की थी। आजकल लगभग सभी जैन पत्र-पत्रिकाओं, वैवाहिक कार्ड, क्षमावाणी कार्ड,धर्म अनुष्ठानों की पत्रिका, भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस, दीपावली आमंत्रण-पत्र एवं अन्य कार्यक्रमों की पत्रिकाओं में इस प्रतीक चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
संरचना
[संपादित करें]जैन प्रतीक चिह्न कई मूल भावनाओं को अपने में समाहित करता है।
प्रतीक चिह्न
[संपादित करें]इस प्रतीक चिह्न का रूप जैन शास्त्रों में वर्णित तीन लोक के आकार जैसा है। इसका निचला भाग अधोलोक, बीच का भाग- मध्य लोक एवं ऊपर का भाग- उर्ध्वलोक का प्रतीक है। इसके सबसे ऊपर भाग में चंद्राकार सिद्ध शिला है। अनन्तान्त सिद्ध परमेष्ठी भगवान इस सिद्ध शिला पर अनन्त काल से अनन्त काल तक के लिए विराजमान हैं।
हाथ
[संपादित करें]चिह्न के निचले भाग में प्रदर्शित हाथ 'अभय' और लोक के सभी जीवों के प्रति अहिंसा का भाव रखने का प्रतीक है।
चक्र
[संपादित करें]हाथ के बीच में २४ आरों वाला चक्र चौबीस तीर्थंकरों द्वारा प्रणीत जिन धर्म को दर्शाता है, जिसका मूल भाव अहिंसा है,
स्वस्तिक
[संपादित करें]ऊपरी भाग में प्रदर्शित स्वस्तिक की चार भुजाएँ चार गतियों- नरक, त्रियंच, मनुष्य एवं देव गति की द्योतक हैं। प्रत्येक संसारी प्राणी जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त होना चाहता है।
तीन बिंदु चिन्ह
[संपादित करें]स्वस्तिक के ऊपर प्रदर्शित तीन बिंदु सम्यक रत्नत्रय-सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान एवं सम्यक चरित्र को दर्शाते हैं और संदेश देते हैं कि सम्यक रत्नत्रय के बिना प्राणी मुक्ति को प्राप्त नहीं कर सकता है। सम्यक रत्नत्रय की उपलब्धता जैनागम के अनुसार मोक्ष प्राप्ति के लिए परम आवश्यक है।
सूत्र वाक्य
[संपादित करें]सबसे नीचे लिखे गए सूत्र 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्' का अर्थ प्रत्येक जीवन परस्पर एक दूसरे का उपकार करें, यही जीवन का लक्षण है।
मूल भावनाएँ
[संपादित करें]संक्षेप में जैन प्रतीक चिह्न संसारी प्राणी मात्र की वर्तमान दशा एवं इससे मुक्त होकर सिद्ध शिला तक पहुँचने का मार्ग दर्शाता है।
उपयोग निर्देश
[संपादित करें]जैन प्रतीक चिह्न किसी भी विचारधारा, दर्शन या दल के ध्वज के समान है, जिसको देखने मात्र से पता लग जाता है कि यह किससे संबंधित है, परंतु इसके लिए किसी भी प्रतीक चिह्न का विशिष्ट (यूनीक) होना एवं सभी स्थानों पर समानुपाती होना बहुत ही आवश्यक है। यह भी आवश्यक है कि प्रतीक ध्वज का प्रारूप बनाते समय जो मूल भावनाएँ इसमें समाहित की गई थीं, उन सभी मूल भावनाओं को यह चिह्न अच्छी तरह से प्रकट करता है।
इस प्रतीक चिह्न को एक रूप छापने के लिए अब इसके फॉरमेट का विकास कर लिया गया है। इस फॉरमेट के उपयोग से इसे सही स्वरूप में छापा जा सकेगा। सुनिश्चित कर लें कि इसके सही फॉरमेट का उपयोग हो रहा है। यह फॉरमेट जैन वेबसाइट से निःशुल्क डाउनलोड भी किया जा सकता है।