सूरत
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]सूरत ^१ संज्ञा स्त्री॰ [फ़ा॰]
१. रूप । आकृति । शक्ल । उ॰—(क) इनकी सूरत तो राजकुमारी की सी है ।—बालमुकुंद गुप्त (शब्द॰) । (ख) मन धन लै दृग जौहरी, चले जात वह बाट । छवि मुकता मुकते मिलै जिहि सूरत की हाट ।—रसनिधि (शब्द॰) । यौ॰—सूरत शक्ल = चेहरा मोहरा । आकृति । सूरत सीरत = आकृति या रूप और गुण । मुहा॰—सूरत बिगड़ना = चेहरा बिगड़ना । चेहरें की रंगत फीकी पड़ना । सूरत बिगाड़ना = (१) चेहरा बिगाड़ना । कुरूप करना । बदसूरत बनाना । विद्रूप करना । (२) अपमानित करना । (३) दंड देना । सूरत बनाना = (१) रूप बनाना । (२) भेस बदलना । (३) मुँह बनाना । नाक भौं सिकोड़ना । अरुचि प्रकट करना । (४) चित्र बनाना । सूरत दिखाना = सामने आना ।
२. छवि । शोभा । सौंदर्य । उ॰—साँवली सूरत तुमारी साँवले । जब हमारी आँख में है घूमती ।—चोखे॰, पृ॰ १ ।
३. उपाय । युक्ति । ढंग । तदबीर । ढब । उ॰—(क) कोई उम्मीद बर नहीं आती, कोई सूरत नजर नहीं आती । मौत का एक दिन मुऐयन है, नींद क्यों रात भर नहीं आती ।—कविता कौ॰, पृ॰ ४७२ । (ख) जाड़े में उनके जीने की कौन सूरत थी ।— शिवप्रसाद (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—देखना । जैसे,—वह उनसे छुटकारा पाने की कोई सूरत नहीं देखता ।—निकालना । जैसे—रुपया पैदा करने की कोई सूरत निकालो ।
४. अवस्था । दशा । हालत । जैसे—उस सुरत में तुम क्या करोगे । उ॰—आपको खयाल न गुजरे कि हमारी किसी सूरत में तह- कीर हुई ।—केशवराम (शब्द॰) ।
सूरत ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ सौराष्ट्र] बंबई प्रदेश के अंतर्गत एक नगर ।
सूरत ^३ संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार जहरीला पौधा जो दक्षिण हिमा- लय, आसाम, बरमा, लंका, पेराक और जावा में होता है । इसे चोरपट्टा भी कहते हैं । विशेष दे॰ 'चोरपट्ट' ।
सूरत ^४ संज्ञा स्त्री॰ [अ॰ सूरह्] कुरान का कोई प्रकरण ।
सूरत पु ^५ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ स्मृति] सुध । स्मरण । ध्यान । याद । विशेष दे॰ 'सुरति' । जैसे,—सब आनंद में ऐसे मग्न थे कि कृष्ण की सूरत किसी को भी न थी ।—लल्लू (शब्द॰) ।
सूरत ^६ वि॰ [सं॰]
१. अनुकूल । मेहरबान । कृपालु ।
२. शांत । सीधा [को॰] ।