श्री गणपत्यथर्वशीर्ष

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॥ श्री गणऩत्मथर्वशीर्व ॥ ॥ श्री गणऩत्मथर्वशीर्व ॥ ॥ शान्ति ऩाठ ॥ ॐ बद्रॊ कणेभब् शण ृ ुमाभ दे र्ा् । बद्रॊ ऩश्मेभाक्षभबमवजत्ा् ॥ न्थथयै यङ्गैथिुष्टुर्ाॊसथिनूभब् । व्मशेभ

दे र्हििॊ मदामु् ॥ ॐ थर्न्थि न इतद्रो र्द्ध ू ा वर्श्र्र्ेदा् ॥ ृ श्रर्ा् । थर्न्थि न् ऩर् थर्न्थिनथिार्क्ष्मो अरयष्टनेभभ् । थर्न्थि नो फि ृ थऩतिदव धािु ॥ ॐ ितभाभर्िु िद् र्क्िायभर्िु अर्िु भाभ ् अर्िु र्क्िायभ ् ॐ शाॊति् । शाॊति् ॥ शाॊति्॥। ॥ उऩतनर्ि ् ॥ ॥िरय् ॐ नभथिे गणऩिमे ॥ त्र्भेर् प्रत्मक्षॊ ित्त्र्भभस। त्र्भेर् क े र्रॊ किावऽभस। त्र्भेर् क े र्रॊ धिावऽभस। त्र्भेर् क े र्रॊ ििावऽभस। त्र्भेर् सर्वं लन्विर्दॊ ब्रह्भाभस। त्र्ॊ साक्षादात्भाऽभस तनत्मभ ् ॥ १॥ गणऩति को नभथकाय िै , िुमिहॊ प्रत्मक्ष ित्त्र् िो, िुमिहॊ क े र्र कत्िाव, िुमिहॊ क े र्र धायणकिाव औय िुमिहॊ क े र्र सॊिायकिाव िो, िुमिहॊ क े र्र सभथि वर्श्र्रुऩ ब्रह्भ िो औय िुमिहॊ साक्षाि ् तनत्म आत्भा िो। ॥ थर्रूऩ ित्त्र् ॥ ऋिॊ र्न्मभ (र्हदष्माभभ)॥ सत्मॊ र्न्मभ (र्हदष्माभभ)॥ २॥ मथाथव कििा िूॉ। सत्म कििा िूॉ। अर् त्र्ॊ भाभ ् । अर् र्क्िायभ ् । अर् श्रोिायभ ् । अर् दािायभ ् । अर् धािायभ ् । अर्ानूचानभर् भशष्मभ ् । अर् ऩाहि सभॊिाि ् ॥३॥

ऩश्चात्िाि ् । अर् ऩुयथिाि ् । अर्ोत्ियात्िाि ् । अर् दक्षक्षणात्िाि ् । अर् चोर्धर्ावत्िाि ्। अर्ाधयात्िाि ्। सर्विो भाॊ ऩाहि िभ ु भेयह यक्षा कयो। र्क्िा की यक्षा कयो। श्रोिा की यक्षा कयो। दािा की यक्षा कयो। धािा की यक्षा कयो। र्डॊग र्ेदवर्द् आचामव की यक्षा कयो। भशष्म यक्षा कयो। ऩीछे से यक्षा कयो। आगे से यक्षा कयो। उत्िय (र्ाभ बाग) की यक्षा कयो। दक्षक्षण बाग की यक्षा कयो। ऊऩय से यक्षा कयो। नीचे की ओय से यक्षा कयो। सर्विोबार् से भेयह यक्षा कयो। सफ हदशाओॊ से भेयह यक्षा कयो। त्र्ॊ र्ाङ््भमथत्र्ॊ चचतभम्। त्र्भानॊदभमथत्र्ॊ ब्रह्भभम्। त्र्ॊ सन्मचदानॊदाद्वर्िीमोऽभस। त्र्ॊ प्रत्मक्षॊ ब्रह्भाभस। त्र्ॊ ज्ञानभमो वर्ज्ञानभमोऽभस ॥४॥ िुभ र्ाङ्भम िो, िुभ चचतभम िो। िुभ आनतदभम िो। िुभ ब्रह्भभम िो। िुभ सन्मचदानतद अद्वर्िीम ऩयभात्भा िो। िुभ प्रत्मक्ष ब्रह्भ िो। िुभ ज्ञानभम िो, वर्ज्ञानभम िो। सर्वं जगहददॊ त्र्त्िो जामिे। सर्वं जगहददॊ त्र्त्िन्थिष्ठति। सर्वं जगहददॊ त्र्तम रमभेष्मति। सर्वं जगहददॊ त्र्तम प्रत्मेति। त्र्ॊ बूभभयाऩोऽनरोऽतनरो नब्। त्र्ॊ चत्र्ारय र्ाक्ऩदातन ॥ ५॥ मि साया जगि ् िभ ु से उत्ऩतन िोिा िै । मि साया जगि ् िभ ु से सय ु क्षक्षि यििा िै । मि साया जगि ् िभ ु भें रहन िोिा औय र्ैलयह चिुवर्वध र्ाक् िो।

िै । मि अखलर वर्श्र् िुभभें िह प्रिीि िोिा िै । िुमिहॊ बूभभ, जर, अन््न औय आकाश िो। िुमिहॊ ऩया, ऩश्मतिी, भर्धमभा

त्र्ॊ गुणत्मािीि् त्र्भर्थथात्मािीि्। त्र्ॊ दे ित्मािीि्। त्र्ॊ कारत्मािीि्। त्र्ॊ भूराधाय् न्थथथोऽभस तनत्मभ ्। त्र्ॊ

शन्क्ित्मात्भक्। त्र्ाॊ मोचगनो र्धमामॊति तनत्मभ ्। त्र्ॊ ब्रह्भा त्र्ॊ वर्ष्णुथत्र्ॊ रुद्रथत्र्ॊ इतद्रथत्र्ॊ अन््नथत्र्ॊ र्ामुथत्र्ॊ सूमथ व त्र्ॊ चॊद्रभाथत्र्ॊ ब्रह्भबूबर् ुव ्थर्योभ ् ॥ ६॥ िुभ सत्त्र्-यज-िभ-इन िीनों गुणों से ऩये िो। िुभ बूि-बवर्ष्म-र्िवभान-इन िीनों कारों से ऩये िो। िुभ थथूर, सूर्क्ष्भ औय कायण- इन िीनों दे िों से ऩये िो। िुभ तनत्म भूराधाय चक्र भें न्थथि िो। िुभ प्रबु-शन्क्ि, उत्साि-शन्क्ि औय भतत्-शन्क्ि- इन िीनों शन्क्िमों से सॊमक् ु ि िो। मोचगजन तनत्म िम ु िाया र्धमान कयिे िैं। िुभ ब्रह्भा िो। िभ ु वर्ष्णु िुभ (तनगण ुव ) त्रत्ऩाद बू् बुर्् थर्् एर्ॊ प्रणर् िो। ॥ गणेश भॊत् ॥

िो। िुभ रुद्र िो। िुभ इतद्र िो। िुभ अन््न िो। िुभ र्ामु िो। िुभ सूमव िो। िुभ चतद्रभा िो। िुभ (सगूण) ब्रह्भ िो,

गणाहदॊ ऩूर्भ व ुमचामव र्णावहदॊ िदनॊियभ ्।अनुथर्ाय् ऩयिय्। अधेतदर ु भसिभ ्। िाये ण ऋद्धभ ्। एित्िर् भनुथर्रूऩभ ्। गकाय् ऩर् व ऩभ ्। अकायो भर्धमभरूऩभ ्। अनथ ू रू ु र्ायश्चातत्मरूऩभ ्। त्रफतदरु ु त्ियरूऩभ ्। नाद् सॊधानभ ्। सॊहििासॊचध्। सैर्ा गणेशवर्द्मा। गणकऋवर््। तनचद् ृ गामत्ीमछॊ द्। गणऩतिदे र्िा। ॐ गॊ गणऩिमे नभ् ॥ ७॥

‘गण’ शब्द क े आहद अक्षय गकाय का ऩिरे उमचायण कयक े अनतिय आहदर्णव अकाय का उमचायण कयें । उसक े फाद अनुथर्ाय यिे । इस प्रकाय अधवचतद्र से ऩिरे शोभबि जो ‘गॊ’ िै , र्ि ओॊकाय क े द्र्ाया रुद्ध िो, अथावि ् उसक े ऩिरे औय ऩीछे बी ओॊकाय िो। मिह िुमिाये भतत् का थर्रुऩ (ॐ गॊ ॐ) िै । ‘गकाय’ ऩूर्रु व ऩ िै , ‘अकाय’ भर्धमभरुऩ िै , ‘अनुथर्ाय’ ऋवर् िैं। तनचद् ृ गामत्ी छतद िै औय गणऩति दे र्िा िै । भतत् िै - ‘ॐ गॊ गणऩिमे नभ्” ॥ गणेश गामत्ी ॥ एकदॊ िाम वर्द्मिे र्क्रिुण्डाम धीभहि ितनो दॊ ति् प्रचोदमाि ् ॥ ८॥ ॥ गणेश रूऩ (र्धमानभ ्)॥

अतत्म रुऩ िै । ‘त्रफतद’ े गणक ु उत्ियरुऩ िै । ‘नाद’ सॊधान िै । सॊहििा’ सॊचध िै । ऐसी मि गणेशवर्द्मा िै । इस वर्द्मा क

एकदति को िभ जानिे िैं , र्क्रिुण्ड का िभ र्धमान कयिे िैं। दतिी िभको उस ज्ञान औय र्धमान भें प्रेरयि कयें । एकदॊ िॊ चिुिवथिॊ ऩाशभॊक ु शधारयणभ ् ॥

यदॊ च र्यदॊ िथिैत्रफवभ्राणॊ भूर्कर्धर्जभ ् ॥ यक्िॊ रॊफोदयॊ शूऩक व णवक ॊ यक्िर्ाससभ ् ॥ यक्िगॊधानुभरपिाॊगॊ यक्िऩुष्ऩै् सुऩून्जिभ ् ॥ बक्िानक ु ॊ वऩनॊ दे र्ॊ जगत्कायणभममि ु भ् ॥ आवर्बि ूव ॊ च सष् ु र्ात्ऩयभ ् ॥ ृ ्मादौ प्रकृिे् ऩरु

एर्ॊ र्धमामति मो तनत्मॊ स मोगी मोचगनाॊ र्य् ॥ ९॥ गणऩतिदे र् एकदति औय चिुवफािु िैं। र्े अऩने चाय िाथों भें ऩाश, अॊक े ु श, दति औय र्यभुद्रा धायण कयिे िैं। उनक र्धर्ज भें भूर्क का चचह्न िै । र्े यक्िर्णव, रमफोदय, शूऩक व णव िथा यक्िर्थत्धायह िैं। यक्िचतदन क े द्र्ाया उनक े अॊग

अनभ े ऩष् े कायण, ु रपि िैं। र्े यक्िर्णव क ु ऩों द्र्ाया सऩ ु न् ू जि िैं। बक्िों की काभना ऩण ू व कयने र्ारे, ज्मोतिभवम, जगि ् क अममुि िथा प्रकृति औय ऩरु े आहद भें आवर्बि ु र् से ऩये वर्द्मभान र्े ऩरु ु र्ोत्िभ सन् ूव िुए। इनका जो इस प्रकाय ृ ष्ट क तनत्म र्धमान कयिा िै , र्ि मोगी मोचगमों भें श्रेष्ठ िै । ॥ अष्ट नाभ गणऩति ॥ नभो व्रािऩिमे । नभो गणऩिमे । नभ् प्रभथऩिमे । नभथिेऽथिु रॊफोदयामैकदॊ िाम । वर्घ्ननाभशने भशर्सुिाम । श्रीर्यदभूिम व े नभो नभ् ॥ १०॥ ॥ परश्रुति ॥ व्रािऩति, गणऩति, प्रभथऩति, रमफोदय, एकदति, वर्घ्ननाशक, भशर्िनम िथा र्यदभत ू िव को नभथकाय िै ।

एिदथर्वशीर्वं मोऽधीिे ॥ स ब्रह्भबूमाम कविऩिे ॥ स सर्वि् सुलभेधिे ॥ स सर्व वर्घ्नैनफ व ार्धमिे ॥ स

ऩॊचभिाऩाऩात्प्रभुममिे ॥ सामभधीमानो हदर्सकृिॊ ऩाऩॊ नाशमति ॥ प्राियधीमानो यात्रत्कृिॊ ऩाऩॊ नाशमति ॥ सामॊप्राि् प्रमुॊजानो अऩाऩो बर्ति ॥ सर्वत्ाधीमानोऽऩवर्घ्नो बर्ति ॥ धभावथक व ाभभोक्षॊ च वर्ॊदति ॥ इदभथर्वशीर्वभभशष्माम न दे मभ ् ॥ मो महद भोिाद्दाथमति स ऩाऩीमान ् बर्ति सिस्रार्िवनाि ् मॊ मॊ काभभधीिे िॊ िभनेन साधमेि ् ॥ ११॥ इस अथर्वशीर्व का जो ऩाठ कयिा िै , र्ि ब्रह्भीबि े वर्घ्नों से फाचधि निहॊ िोिा, र्ि ू िोिा िै , र्ि ककसी प्रकाय क

सर्विोबार्ेन सुली िोिा िै , र्ि ऩॊच भिाऩाऩों से भुक्ि िो जािा िै । सामॊकार इसका अर्धममन कयनेर्ारा हदन भें ककमे िुए ऩाऩों का नाश कयिा िै , प्राि्कार ऩाठ कयनेर्ारा यात्रत् भें ककमे िुए ऩाऩों का नाश कयिा िै । सामॊ औय प्राि्कार ऩाठ कयने र्ारा तनष्ऩाऩ िो जािा िै । (सदा) सर्वत् ऩाठ कयनेर्ारे सबी वर्घ्नों से भुक्ि िो जािा िै एर्ॊ धभव, अथव, काभ औय भोक्ष- इन चायों ऩुरुर्ाथों को प्रापि कयिा िै । मि अथर्वशीर्व इसको निहॊ दे ना चाहिमे , जो भशष्म न िो। जो द्र्ाया उसे भसद्ध कय रेगा। (वर्वर्ध प्रमोग) अनेन गणऩतिभभबवर्ॊचति स र्ा्भी बर्ति ॥ चिुर्थमावभनश्नन ् जऩति स वर्द्मार्ान ् बर्ति । स मशोर्ान ् बर्ति ॥ इत्मथर्वणर्ाक्मभ ् ॥ ब्रह्भाद्माचयणॊ वर्द्माि ् न त्रफबेति कदाचनेति ॥ १२॥

भोिर्श अभशष्म को उऩदे श दे गा, र्ि भिाऩाऩी िोगा। इसकी १००० आर्न् े ृ त्ि कयने से उऩासक जो काभना कये गा, इसक

जो इस भतत् क े द्र्ाया श्रीगणऩति का अभबर्ेक कयिा िै , र्ि र्ा्भी िो जािा िै । जो चिुथी तिचथ भें उऩर्ास कय जऩ कयिा िै , र्ि वर्द्मार्ान ् िो जािा िै । मि अथर्वण-र्ाक्म िै । जो ब्रह्भाहद आर्यण को जानिा िै , र्ि कबी बमबीि निहॊ िोिा।

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