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‘आददत्मरृदम स्तोत्र’

विननमोग

ॐ अस्म आददत्म रृदमस्तोत्रस्मागस्त्मऋवियनुष्टुऩछन्द्, आददत्मरृदमबूतो

बगिान ब्रह्भा दे िता ननयस्ताशेिविघ्नतमा ब्रह्भविद्मासिद्धौ ििवत्र जमसिद्धौ च विननमोग्।

ऋष्माददन्माि

ॐ अगस्त्मऋिमे नभ्, सशयसि। अनुष्टुऩछन्दिे नभ्, भुखे। आददत्मरृदमबूतब्रह्भदे ितामै नभ्


रृदद।

ॐ फीजाम नभ्, गह्


ु मे। यश्मभभते शक्तमे नभ्, ऩादमो:। ॐ तत्िवितरु यत्माददगामत्रीकीरकाम नभ्
नाबौ।

कयन्माि

ॐ यश्मभभते अॊगुष्ठाभमाॊ नभ्। ॐ िभुद्मते तजवनीभमाॊ नभ्।

ॐ दे िािुयनभस्कृताम भध्मभाभमाॊ नभ्। ॐ वििस्िते अनासभकाभमाॊ नभ्।

ॐ बास्कयाम कननश्ष्ठकाभमाॊ नभ्। ॐ बुिनेमियाम कयतरकयऩष्ृ ठाभमाॊ नभ्।

रृदमादद अॊगन्माि

ॐ यश्मभभते रृदमाम नभ्। ॐ िभुद्मते सशयिे स्िाहा। ॐ दे िािुयनभस्कृताम सशखामै ििट्।

ॐ वििस्िते किचाम हुभ ्। ॐ बास्कयाम नेत्रत्रमाम िौिट्। ॐ बुिनेमियाम अस्त्राम पट्।

इि प्रकाय न्माि कयके ननमनाॊककत भॊत्र िे बगिान िम


ू व का ध्मान एिॊ नभस्काय कयना चादहए-

ॐ बूबि
ुव ् स्ि् तत्िवितुियव े ण्मॊ बगो दे िस्म धीभदह धधमो मो न् प्रचोदमात ्।

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
आददत्मरृदम स्तोत्र

ततो मुद्धऩरयश्रान्तॊ िभये धचन्तमा श्स्थतभ ् ।

यािणॊ चाग्रतो दृष्ट्िा मुद्धाम िभुऩश्स्थतभ ् ॥1॥

दै ितैमच िभागमम द्रष्टुभभमागतो यणभ ् ।

उऩगममाब्रिीद् याभभगस्त्मो बगिाॊस्तदा ॥2॥


उधय श्री याभचन्द्रजी मुद्ध िे थककय धचन्ता कयते हुए यणबूसभ भें खडे थे। इतने भें यािण बी
मुद्ध के सरए उनके िाभने उऩश्स्थत हो गमा। मह दे ख बगिान अगस्त्म भुनन, जो दे िताओॊ के
िाथ मुद्ध दे खने के सरए आमे थे, श्रीयाभ के ऩाि जाकय फोरे।

याभ याभ भहाफाहो श्रण


ृ ु गह्
ु भॊ िनातनभ ् ।

मेन ििावनयीन ् ित्ि िभये विजनमष्मिे ॥3॥

‘िफके रृदम भें यभण कयने िारे भहाफाहो याभ ! मह िनातन गोऩनीम स्तोत्र िुनो। ित्ि ! इिके
जऩ िे तभ
ु मद्ध
ु भें अऩने िभस्त शत्रओ
ु ॊ ऩय विजम ऩा जाओगे।’

आददत्मरृदमॊ ऩुण्मॊ ििवशत्रवु िनाशनभ ् ।

जमािहॊ जऩॊ ननत्मभक्षमॊ ऩयभॊ सशिभ ् ॥4॥

ििवभॊगरभागल्मॊ ििवऩाऩप्रणाशनभ ् ।

धचन्ताशोकप्रशभनभामुिध
व न
व भुत्तभभ ् ॥5॥
‘इि गोऩनीम स्तोत्र का नाभ है ‘आददत्मरृदम’। मह ऩयभ ऩवित्र औय िमऩूणव शत्रओ
ु ॊ का नाश
कयने िारा है । इिके जऩ िे िदा विजम की प्राश्तत होती है । मह ननत्म अक्ष्म औय ऩयभ
कल्माणभम स्तोत्र है । िमऩूणव भॊगरों का बी भॊगर है । इििे िफ ऩाऩों का नाश हो जाता है ।
मह धचन्ता औय शोक को सभटाने तथा आमु को फढाने िारा उत्तभ िाधन है ।’
यश्मभभन्तॊ िभुद्मन्तॊ दे िािुयनभस्कृतभ ् ।

ऩुजमस्ि वििस्िन्तॊ बास्कयॊ बुिनेमियभ ् ॥6॥


‘बगिान िूमव अऩनी अनन्त ककयणों िे िुशोसबत (यश्मभभान ्) हैं। मे ननत्म उदम होने िारे
(िभद्
ु मन ्), दे िता औय अियु ों िे नभस्कृत, वििस्िान ् नाभ िे प्रसिद्ध, प्रबा का विस्ताय कयने िारे
(बास्कय) औय िॊिाय के स्िाभी (बि
ु नेमिय) हैं। तभ
ु इनका (यश्मभभते नभ्, िभद्
ु मते नभ्,
दे िािुयनभस्कताम नभ्, वििस्िते नभ्, बास्कयाम नभ्, बुिनेमियाम नभ् इन नाभ भॊत्रों के
द्िाया) ऩूजन कयो।’

ििवदेिात्भको ह्मेि तेजस्िी यश्मभबािन: ।

एि दे िािुयगणाॊल्रोकान ् ऩानत गबश्स्तसब: ॥7॥


‘िमऩूणव दे िता इन्हीॊ के स्िरूऩ हैं। मे तेज की यासश तथा अऩनी ककयणों िे जगत को ित्ता एिॊ
स्पूनतव प्रदान कयने िारे हैं। मे ही अऩनी यश्मभमों का प्रिाय कयके दे िता औय अियु ों िदहत
िमऩूणव रोकों का ऩारन कयते हैं।’

एि ब्रह्भा च विष्णुमच सशि: स्कन्द: प्रजाऩनत: ।

भहे न्द्रो धनद: कारो मभ: िोभो ह्माऩाॊ ऩनत् ॥8॥

वऩतयो ििि: िाध्मा अश्मिनौ भरुतो भनु: ।

िामि
ु दव हन: प्रजा प्राण ऋतक
ु ताव प्रबाकय: ॥9॥
‘मे ही ब्रह्भा, विष्ण,ु सशि, स्कन्द, प्रजाऩनत, इन्द्र, कुफेय, कार, मभ, चन्द्रभा, िरूण, वऩतय, िि,ु िाध्म,
अश्मिनीकुभाय, भरुदगण, भनु, िाम,ु अश्नन, प्रजा, प्राण, ऋतुओॊ को प्रकट कयने िारे तथा प्रबा के
ऩुॊज हैं।’
आददत्म: िविता िूम:व खग: ऩि
ू ा गबश्स्तभान ् ।

िुिणविदृशो बानुदहवयण्मये ता ददिाकय: ॥10॥

हरयदमि: िहस्त्राधचव: िततिश्ततभवयीधचभान ् ।

नतसभयोन्भथन: शमबुस्त्िष्टा भातवण्डकोंऽशुभान ् ॥11॥

दहयण्मगबव: सशसशयस्तऩनोऽहस्कयो यवि: ।

अश्ननगबोऽददते: ऩुत्र् शॊख् सशसशयनाशन: ॥12॥

व्मोभनाथस्तभोबेदी ऋनमजु:िाभऩायग: ।

घनिश्ृ ष्टयऩाॊ सभत्रो विन्ध्मिीथीतरिॊगभ् ॥13॥

आतऩी भण्डरी भत्ृ म:ु वऩगॊर: ििवताऩन:।

कविविवमिो भहातेजा: यक्त:ििवबिोद् बि: ॥14॥

नक्षत्रग्रहतायाणाभधधऩो विमिबािन: ।

तेजिाभवऩ तेजस्िी द्िादशात्भन ् नभोऽस्तु ते ॥15॥


‘इन्हीॊ के नाभ आददत्म (अददनतऩुत्र), िविता (जगत को उत्ऩन्न कयने िारे), िूमव (ििवव्माऩक),
खग (आकाश भें विचयने िारे), ऩूिा (ऩोिण कयने िारे), गबश्स्तभान ् (प्रकाशभान), िुिण
व िदृश,
बानु (प्रकाशक), दहयण्मये ता (ब्रह्भाण्ड की उत्ऩश्त्त के फीज), ददिाकय (यात्रत्र का अन्धकाय दयू कयके
ददन का प्रकाश पैराने िारे), हरयदमि (ददशाओॊ भें व्माऩक अथिा हये यॊ ग के घोडे िारे), िहस्राधचव
(हजायों ककयणों िे िश
ु ोसबत), नतसभयोन्भथन (अन्धकाय का नाश कयने िारे), शमबू (कल्माण के
उदगभस्थान), त्िष्टा (बक्तों का द्ु ख दयू कयने अथिा जगत का िॊहाय कयने िारे), अॊशुभान
(ककयण धायण कयने िारे), दहयण्मगबव (ब्रह्भा), सशसशय (स्िबाि िे ही िुख दे ने िारे), तऩन (गभी
ऩैदा कयने िारे), अहयकय (ददनकय), यवि (िफकी स्तुनत के ऩात्र), अश्ननगबव (अश्नन को गबव भें
धायण कयने िारे), अददनतऩुत्र, शॊख (आनन्दस्िरूऩ एिॊ व्माऩक), सशसशयनाशन (शीत का नाश
कयने िारे), व्मोभनाथ (आकाश के स्िाभी), तभोबेदी (अन्धकाय को नष्ट कयने िारे), ऋग, मज्ु
औय िाभिेद के ऩायगाभी, घनिश्ृ ष्ट (घनी िश्ृ ष्ट के कायण), अऩाॊ सभत्र (जर को उत्ऩन्न कयने
िारे), विन्ध्मीथीतरिॊगभ (आकाश भें तीव्रिेग िे चरने िारे), आतऩी (घाभ उत्ऩन्न कयने िारे),
भण्डरी (ककयणिभूह को धायण कयने िारे), भत्ृ मु (भौत के कायण), वऩॊगर (बूये यॊ ग िारे),
ििवताऩन (िफको ताऩ दे ने िारे), कवि (त्रत्रकारदशी), विमि (ििवस्िरूऩ), भहातेजस्िी, यक्त (रार
यॊ गिारे), ििवबिोदबि (िफकी उत्ऩश्त्त के कायण), नक्षत्र, ग्रह औय तायों के स्िाभी, विमिबािन
(जगत की यक्षा कयने िारे), तेजश्स्िमों भें बी अनत तेजस्िी तथा द्िादशात्भा (फायह स्िरूऩों भें
असबव्मक्त) हैं। (इन िबी नाभों िे प्रसिद्ध िूमद
व े ि !) आऩको नभस्काय है ।’

नभ: ऩूिावम धगयमे ऩश्मचभामाद्रमे नभ: ।

ज्मोनतगवणानाॊ ऩतमे ददनाधधऩतमे नभ: ॥16॥


‘ऩूिधव गयी उदमाचर तथा ऩश्मचभधगरय अस्ताचर के रूऩ भें आऩको नभस्काय है । ज्मोनतगवणों (ग्रहों
औय तायों) के स्िाभी तथा ददन के अधधऩनत आऩको प्रणाभ है ।’

जमाम जमबद्राम हमवमिाम नभो नभ: ।

नभो नभ: िहस्त्राॊशो आददत्माम नभो नभ: ॥17॥


‘आऩ जम स्िरूऩ तथा विजम औय कल्माण के दाता है । आऩके यथ भें हये यॊ ग के घोडे जत
ु े यहते
हैं। आऩको फायॊ फाय नभस्काय है । िहस्रों ककयणों िे िुशोसबत बगिान िूमव ! आऩको फायॊ फाय प्रणाभ
है । आऩ अददनत के ऩुत्र होने के कायण आददत्म नाभ िे प्रसिद्ध है , आऩको नभस्काय है ।’
नभ उग्राम िीयाम िायॊ गाम नभो नभ: ।

नभ: ऩद्मप्रफोधाम प्रचण्डाम नभोऽस्तु ते ॥18॥

ब्रह्भेशानाच्मुतश
े ाम िुयामाददत्मिचविे ।

बास्िते ििवबक्षाम यौद्राम िऩुिे नभ: ॥19॥


‘(ऩयात्ऩय रूऩ भें ) आऩ ब्रह्भा, सशि औय विष्णु के बी स्िाभी हैं। ियू आऩकी िॊज्ञा हैं, मह
िूमभ
व ण्डर आऩका ही तेज है , आऩ प्रकाश िे ऩरयऩूणव हैं, िफको स्िाहा कय दे ने िारा अश्नन
आऩका ही स्िरूऩ है , आऩ यौद्ररूऩ धायण कयने िारे हैं, आऩको नभस्काय है ।’

तभोघ्नाम दहभघ्नाम शत्रघ्


ु नामासभतात्भने ।

कृतघ्नघ्नाम दे िाम ज्मोनतिाॊ ऩतमे नभ: ॥20॥


‘आऩ अज्ञान औय अन्धकाय के नाशक, जडता एिॊ शीत के ननिायक तथा शत्रु का नाश कयने िारे
हैं, आऩका स्िरूऩ अप्रभेम है । आऩ कृतघ्नों का नाश कयने िारे, िमऩण
ू व ज्मोनतमों के स्िाभी औय
दे िस्िरूऩ हैं , आऩको नभस्काय है ।’

तततचाभीकयाबाम हयमे विमिकभवणे ।

नभस्तभोऽसबननघ्नाम रुचमे रोकिाक्षक्षणे ॥21॥


‘आऩकी प्रबा तऩामे हुए िुिणव के िभान है , आऩ हरय (अज्ञान का हयण कयने िारे) औय
विमिकभाव (िॊिाय की िश्ृ ष्ट कयने िारे) हैं , तभ के नाशक, प्रकाशस्िरूऩ औय जगत के िाक्षी हैं,
आऩको नभस्काय है ।’

नाशमत्मेि िै बूतॊ तभेि िज


ृ नत प्रबु: ।

ऩामत्मेि तऩत्मेि ििवत्मेि गबश्स्तसब: ॥22॥


‘यघुनन्दन ! मे बगिान िम
ू व ही िमऩूणव बूतों का िॊहाय, िश्ृ ष्ट औय ऩारन कयते हैं। मे ही अऩनी
ककयणों िे गभी ऩहुॉचाते औय ििाव कयते हैं।’
एि ितु तेिु जागनतव बत
ू ि
े ु ऩरयननश्ष्ठत: ।

एि चैिाश्ननहोत्रॊ च परॊ चैिाश्ननहोत्रत्रणाभ ् ॥23॥


‘मे िफ बूतों भें अन्तमावभीरूऩ िे श्स्थत होकय उनके िो जाने ऩय बी जागते यहते हैं। मे ही
अश्ननहोत्र तथा अश्ननहोत्री ऩरु
ु िों को सभरने िारे पर हैं।’

दे िामच क्रतिमचैि क्रतुनाॊ परभेि च ।

मानन कृत्मानन रोकेिु ििेिु ऩयभॊ प्रब:ु ॥24॥


‘(मज्ञ भें बाग ग्रहण कयने िारे) दे िता, मज्ञ औय मज्ञों के पर बी मे ही हैं। िमऩूणव रोकों भें
श्जतनी कक्रमाएॉ होती हैं, उन िफका पर दे ने भें मे ही ऩूणव िभथव हैं।’

एनभाऩत्िु कृच्रे िु कान्ताये िु बमेिु च ।

कीतवमन ् ऩुरुि: कश्मचन्नाििीदनत याघि ॥25॥

‘याघि ! विऩश्त्त भें , कष्ट भें , दग


ु भ
व भागव भें तथा औय ककिी बम के अििय ऩय जो कोई ऩुरुि
इन िूमद
व े ि का कीतवन कयता है , उिे द्ु ख नहीॊ बोगना ऩडता।’

ऩूजमस्िैनभेकाग्रो दे िदे िॊ जगततनतभ ् ।

एतश्त्त्रगणु णतॊ जतत्िा मद्ध


ु ेिु विजनमष्मसि ॥26॥
‘इिसरए तभ
ु एकाग्रधचत होकय इन दे िाधधदे ि जगदीमिय की ऩज
ू ा कयो। इि आददत्म रृदम का
तीन फाय जऩ कयने िे तभ
ु मुद्ध भें विजम ऩाओगे।’

अश्स्भन ् क्षणे भहाफाहो यािणॊ त्िॊ जदहष्मसि ।

एिभुक्ता ततोऽगस्त्मो जगाभ ि मथागतभ ् ॥27॥


‘भहाफाहो ! तुभ इिी क्षण यािण का िध कय िकोगे।’ मह कहकय अगस्त्म जी जैिे आमे थे, उिी
प्रकाय चरे गमे।
एतच्ुत्िा भहातेजा नष्टशोकोऽबित ् तदा ॥

धायमाभाि िुप्रीतो याघि प्रमतात्भिान ् ॥28॥

आददत्मॊ प्रेक्ष्म जतत्िेदॊ ऩयॊ हिवभिाततिान ् ।

त्रत्रयाचमम शूधचबूत्व िा धनुयादाम िीमविान ् ॥29॥

यािणॊ प्रेक्ष्म रृष्टात्भा जमाथं िभऩ


ु ागतभ ् ।

ििवमत्नेन भहता ित
ृ स्तस्म िधेऽबित ् ॥30॥
उनका उऩदे श िुनकय भहातेजस्िी श्रीयाभचन्द्रजी का शोक दयू हो गमा। उन्होंने प्रिन्न होकय
शद्ध
ु धचत्त िे आददत्मरृदम को धायण ककमा औय तीन फाय आचभन कयके शद्ध
ु हो बगिान िम
ू व
की ओय दे खते हुए इिका तीन फाय जऩ ककमा। इििे उन्हें फडा हिव हुआ। कपय ऩयभ ऩयाक्रभी
यघुनाथजी ने धनुि उठाकय यािण की ओय दे खा औय उत्िाहऩूिक
व विजम ऩाने के सरए िे आगे
फढे । उन्होंने ऩूया प्रमत्न कयके यािण के िध का ननमचम ककमा।

अथ यवियिदश्न्नयीक्ष्म याभॊ भदु दतभना: ऩयभॊ प्ररृष्मभाण: ।

ननसशचयऩनतिॊक्षमॊ विददत्िा ियु गणभध्मगतो िचस्त्िये नत ॥


उि िभम दे िताओॊ के भध्म भें खडे हुए बगिान िम
ू व ने प्रिन्न होकय श्रीयाभचन्द्रजी की ओय
दे खा औय ननशाचयाज यािण के विनाश का िभम ननकट जानकय हिवऩि
ू क
व कहा ‘यघन
ु न्दन ! अफ
जल्दी कयो’।

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

इनत श्रीिाल्भीकीमे याभामणे मुद्धकाण्डे अगस्त्मप्रोक्तभाददत्मरृदमस्तोत्रॊ िमऩूणभ


व ्।

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

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