Abcd
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विननमोग
ऋष्माददन्माि
कयन्माि
रृदमादद अॊगन्माि
ॐ बूबि
ुव ् स्ि् तत्िवितुियव े ण्मॊ बगो दे िस्म धीभदह धधमो मो न् प्रचोदमात ्।
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आददत्मरृदम स्तोत्र
‘िफके रृदम भें यभण कयने िारे भहाफाहो याभ ! मह िनातन गोऩनीम स्तोत्र िुनो। ित्ि ! इिके
जऩ िे तभ
ु मद्ध
ु भें अऩने िभस्त शत्रओ
ु ॊ ऩय विजम ऩा जाओगे।’
ििवभॊगरभागल्मॊ ििवऩाऩप्रणाशनभ ् ।
धचन्ताशोकप्रशभनभामुिध
व न
व भुत्तभभ ् ॥5॥
‘इि गोऩनीम स्तोत्र का नाभ है ‘आददत्मरृदम’। मह ऩयभ ऩवित्र औय िमऩूणव शत्रओ
ु ॊ का नाश
कयने िारा है । इिके जऩ िे िदा विजम की प्राश्तत होती है । मह ननत्म अक्ष्म औय ऩयभ
कल्माणभम स्तोत्र है । िमऩूणव भॊगरों का बी भॊगर है । इििे िफ ऩाऩों का नाश हो जाता है ।
मह धचन्ता औय शोक को सभटाने तथा आमु को फढाने िारा उत्तभ िाधन है ।’
यश्मभभन्तॊ िभुद्मन्तॊ दे िािुयनभस्कृतभ ् ।
िामि
ु दव हन: प्रजा प्राण ऋतक
ु ताव प्रबाकय: ॥9॥
‘मे ही ब्रह्भा, विष्ण,ु सशि, स्कन्द, प्रजाऩनत, इन्द्र, कुफेय, कार, मभ, चन्द्रभा, िरूण, वऩतय, िि,ु िाध्म,
अश्मिनीकुभाय, भरुदगण, भनु, िाम,ु अश्नन, प्रजा, प्राण, ऋतुओॊ को प्रकट कयने िारे तथा प्रबा के
ऩुॊज हैं।’
आददत्म: िविता िूम:व खग: ऩि
ू ा गबश्स्तभान ् ।
व्मोभनाथस्तभोबेदी ऋनमजु:िाभऩायग: ।
नक्षत्रग्रहतायाणाभधधऩो विमिबािन: ।
ब्रह्भेशानाच्मुतश
े ाम िुयामाददत्मिचविे ।
ििवमत्नेन भहता ित
ृ स्तस्म िधेऽबित ् ॥30॥
उनका उऩदे श िुनकय भहातेजस्िी श्रीयाभचन्द्रजी का शोक दयू हो गमा। उन्होंने प्रिन्न होकय
शद्ध
ु धचत्त िे आददत्मरृदम को धायण ककमा औय तीन फाय आचभन कयके शद्ध
ु हो बगिान िम
ू व
की ओय दे खते हुए इिका तीन फाय जऩ ककमा। इििे उन्हें फडा हिव हुआ। कपय ऩयभ ऩयाक्रभी
यघुनाथजी ने धनुि उठाकय यािण की ओय दे खा औय उत्िाहऩूिक
व विजम ऩाने के सरए िे आगे
फढे । उन्होंने ऩूया प्रमत्न कयके यािण के िध का ननमचम ककमा।
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