Gaza: ईंधन के अभाव से, सम्पूर्ण मानवीय सहायता अभियान ठप होने का जोखिम
फ़लस्तीनी शरणार्थियों की सहायता के लिए संयुक्त राष्ट्र एजेंसी – UNRWA ने गुरूवार को कहा है कि ईंधन की कमी के कारण, ग़ाज़ा में, मानवीय सहायता उपलब्ध कराने का पूरा ढाँचा असमर्थ हो रहा है, जहाँ मल निकासी के नाले का पानी सड़कों पर बह रहा है.
UNRWA के महाआयुक्त फ़िलिपे लज़ारिनी ने जिनीवा में पत्रकारों के साथ बातचीत में, युद्धविराम लागू किए जाने की पुकारें दोहराई हैं. उन्होंने एजेंसी को निशाना बनाकर किए जा रहे दुष्प्रचार पर भी सवालों के जवाब दिए, जिनमें ये दावे शामिल हैं कि सहायता सामग्री की मंज़िल बदली जा रही है.
उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसी भी ख़बरें मिली हैं जिनमें कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र के कुछ स्कूलों का प्रयोग, “सैन्य उद्देश्यों के लिए” किया जा रहा है.
प्रतिबद्धता संकट में
फ़िलिपे लज़ारिनी ने इस प्रैस वार्ता में कहा कि उन्हें ऐसी ख़बरें मिली हैं कि ईंधन के अभाव के कारण ग़ाज़ा में, संचार व्यवस्था ठप हो गई है.
उन्होंने अपनी पहले की चेतावनी दोहराई कि UNRWA के पास ईंधन बिल्कुल ख़त्म हो रहा है जिससे ग़ाज़ा के लगभग 22 लाख लोगों के लिए, जीवनरक्षक सहायता आपूर्ति ख़तरे में पड़ रही है.
ऐसे हालात में, सहायता सामग्री की आपूर्ति से लेकर, जल आपूर्ति, यहाँ तक कि एटीएम मशीन से नक़दी निकालने तक, सारे काम प्रभावित होंगे.
फ़िलिपे लज़ारिनी ने कहा, “हम फ़लस्तीनी लोगों को सहायता पहुँचाने की अपनी प्रतिबद्धता अब और समय के लिए नहीं जारी रख पाएंगे.”
“मेरा मानना है कि हमारे अभियान का गला घोंटने और UNRWA के अभियान को ठप करने का एक सोचा-समझा प्रयास है.”
उत्तरी इलाक़े से विशाल विस्थापन
फ़िलिपे लज़ारिनी ने, ग़ाज़ा में छह सप्ताह के टकराव में हुई भीषण तबाही का कुछ ख़ाका पेश किया और कहा कि इस टकराव ने, 1948 के बाद से, सर्वाधिक संख्या में फ़लस्तीनियों का विस्थापन शुरू कर दिया है.
ग़ाज़ा के उत्तरी इलाक़े से लाखों लोग, दक्षिणी हिस्से में पलायन कर गए हैं, जो वहाँ भूखे-प्यासे, थके-मांदे और हतप्रभ हालत में पहुँच रहे हैं.
UNRWA के स्कूलों में इस समय आठ लाख से भी अधिक लोग, बेहद ख़राब हालात में शरण लिए हुए हैं जिनमें भोजन, पानी और समुचित स्वच्छता के अभाव की परिस्थितियाँ शामिल हैं.
इन आश्रय स्थलों में रहने वाले लोगों की लगभग 40 संख्या में, पहले की त्वचा की बीमारियाँ नज़र आने लगी हैं.
यूएन आश्रय स्थलों पर हमले
फ़िलिपे लज़ारिनी ने UNRWA की हाल की चिन्ताओं के साथ-साथ “भ्रामक जानकारी” या “दुस्सूचना” के बारे में भी बात की.
उन्होंने कहा कि वैसे तो लोग ग़ाज़ा के उत्तरी इलाक़े से निकल रहे हैं मगर, एक तिहाई मौतें, ग़ाज़ा के दक्षिणी इलाक़े में हुई हैं.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि, “ग़ाज़ा में कोई भी स्थान सुरक्षित नहीं है”, जिनमें यूएन परिसर भी हैं.
“ये टकराव शुरू होने के बाद से, संयुक्त राष्ट्र के लगभग 60 परिसरों पर हमले हुए हैं. अभी तक 60 लोगों की मौतें हो चुकी हैं. सैकड़ों लोग घायल भी हुए हैं.”
निन्दा और स्पष्टीकरण
फ़िलिपे लज़ारिनी ने बताया कि इस टकराव में मारे गए एजेंसी के स्टाफ़ की संख्या 103 हो गई है, अलबत्ता ये संख्या इससे कहीं अधिक होने की सम्भावना है. उन्होंने इन सहयोगियों को संयुक्त राष्ट्र के सिविल सेवक बताया जो, एक ऐसे समुदाय की सेवा करने के लिए समर्पित थे, जिसका, दरअसल इस टकराव से कुछ लेना-देना नहीं है.
उन्होंने इस बारे में प्रकाशित हुए लेखों पर भी प्रतिक्रिया दी कि UNRWA के स्कूलों में नफ़रत सिखाई जाती है, और इन आरोपों का सिरे से खंडन किया. उन्होंने कहा कि UNRWA हेट स्पीच, नस्लवाद और भेदभाव, शत्रुता, या हिंसा को भड़काने वाले कृत्यों या शब्दों के लिए, बिल्कुल शून्य सहिष्णुता की नीति रखती है.
फ़िलिपे लज़ारिनी ने कहा, “UNRWA, इसके कर्मचारियों और स्कूलों को, इसराइल में 7 अक्टूबर को हुए हमलों से जोड़ने के दावों को नकारती है; एजेंसी उस हमला की प्रबलतम शब्दों में निन्दा कर चुकी है और मैं भी उस हमले की निन्दा करता रहा हूँ.”
उन्होंने “विशाल पैरोकारी अभियानों के माध्यम से, विशेष रूप से मौजूदा परिस्थितियों में, इस तरह के दावे करने वालों के इरादों पर सवाल उठाया.”
उन्होंने बताया कि पिछले छह सप्ताहों के दौरान, संयुक्त राष्ट्र के परिसरों पर लगभग लगातार हमले हुए हैं.
उन्हें हाल के दिनों में ऐसी ख़बरें मिली हैं कि UNRWA के अनेक स्कूलों का सैन्य उद्देश्यों के लिए प्रयोग हुआ है, जिनमें कुछ स्कूलों में हथियारों की बरामदगी और कम से कम दो यूएन स्कूलों में इसराइली बलों की तैनाती शामिल है.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यह एक “खुला उल्लंघन” है जिससे ज़मीन पर तैनात, UNRWA के सहयोगी ख़तरे में पड़ते हैं.
फ़िलिपे लज़ारिनी ने साथ ही ये भी बताया कि बुधवार तक, ग़ाज़ा के दक्षिणी इलाक़े में, 70 प्रतिशत आबादी को, स्वच्छ पानी तक पहुँच नहीं बची थी, और गुरूवार तक मिली ख़बरों के अनुसार, मल यानि गन्दे नाले का पानी सड़कों पर बहने लगा था.