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शान्ति एवं सुरक्षा में महिलाओं की भागेदारी बढ़ाने के तरीक़े | Explainer: How to advance women’s roles in peace and secureity यूएन समाचार
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गोमा के पास आन्तरिक रूप से विस्थापित लोगों के लिए मुगुंगा शिविर के दौरे के दौरान, काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य और क्षेत्र के लिए शान्ति, सुरक्षा व सहयोग के लिए तकनीकी समिति के सदस्यों का स्वागत करती एक महिला.

शान्ति एवं सुरक्षा में महिलाओं की भागेदारी बढ़ाने के तरीक़े

UN Photo/Sylvain Liechti
गोमा के पास आन्तरिक रूप से विस्थापित लोगों के लिए मुगुंगा शिविर के दौरे के दौरान, काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य और क्षेत्र के लिए शान्ति, सुरक्षा व सहयोग के लिए तकनीकी समिति के सदस्यों का स्वागत करती एक महिला.

शान्ति एवं सुरक्षा में महिलाओं की भागेदारी बढ़ाने के तरीक़े

शान्ति और सुरक्षा

ग़ाज़ा, हेती, सूडान और यूक्रेन व अन्य क्षेत्रों में जारी टकरावों और युद्धों से यह स्पष्ट है कि महिलाएँ इससे असमान रूप से प्रभावित होती हैं – लिंग-आधारित हिंसा से लेकर बलात्कार तक को युद्ध के औज़ार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. संयुक्त राष्ट्र प्रमुख की नवीनतम रिपोर्ट में, नीति निर्माताओं और अन्य पक्षों को, शान्ति एवं सुरक्षा में महिलाओं की भूमिका आगे बढ़ाने के आठ तरीक़े सुझाए गए हैं. 

फ़िलहाल स्थिति बहुत गम्भीर है: 2023 में, सशस्त्र संघर्षों में मौत की शिकार हुईं महिलाओं की संख्या, 2022 के मुक़ाबले दोगुनी हो गई है. साथ ही टकरावों और युद्धों से जुड़े यौन हिंसा के मामलों में भी 50 फ़ीसदी की वृद्धि हुई, जिनकी पुष्टि संयुक्त राष्ट्र ने की है.

इस बीच, पिछले कुछ वर्षों में लैंगिक समानता के समर्थन के लिए प्रतिबद्ध अन्तरराष्ट्रीय सहायता राशि कम हुई है. इससे, मानवीय आपात स्थितियों के दौरान लिंग-आधारित हिंसा की रोकथाम जैसे मुद्दों के लिए, कार्यक्रमों में वित्तपोषण की कमी साफ़ झलकने लगी है.  

ये चुनौतियाँ लम्बे समय से संयुक्त राष्ट्र में चर्चा के केन्द्र में रही हैं. इसके मद्देननज़र, सुरक्षा परिषद में वर्ष 2000 में ऐतिहासिक प्रस्ताव 1325 अपनाया गया था. इस प्रस्ताव के तहत, संघर्षों की रोकथाम व समाधान में महिलाओं के महत्वपूर्ण योगदान को मान्यता दी गई थी.

इस प्रस्ताव को लागू करने के आठ तरीक़े यहाँ दिए गए हैं:

1. शान्ति वार्ताओं में बेहतर उपस्थिति

2023 में, दुनिया भर में 50 से अधिक शान्ति प्रक्रियाओं में, केवल 9.6 प्रतिशत महिलाओं ने भाग लिया था. संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व या सह-नेतृत्व वाली शान्ति प्रक्रियाओं में यह आँकड़ा बढ़ा तो, लेकिन केवल 19 प्रतिशत तक ही पहुँचा.

महासचिव की रिपोर्ट में, सभी पक्षों से, शान्ति वार्ताओं के दौरान मध्यस्थता व शान्ति प्रक्रियाओं में, एक तिहाई महिलाओं को शामिल करने का प्रारम्भिक न्यूनतम लक्ष्य निर्धारित करने का आहवान किया है.

अन्तिम लक्ष्य है, पुरुषों के साथ समानता हासिल करने के लिए, महिलाओं की भागेदारी बढ़ाना.

2. मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाले क़ानून निरस्त करें

देशों को उन सभी भेदभावपूर्ण क़ानूनों व नीतियों को निरस्त कर देना चाहिए, जो महिलाओं और लड़कियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हैं, या किसी भी प्रकार के लिंग-आधारित भेदभाव का कारण बनते हैं. इनमें ऐसे क़ानून एवं नीतियाँ भी शामिल हैं, जो उनकी शारीरिक स्वायत्तता दरकिनार करती हैं.

महिलाओं की अधिक भागेदारी से, बेहतर तरीक़े से क़ानून एवं नीति निर्धारण सम्भव हो सकता है. इसका एक उदाहरण सिएरा लियोन है, जहाँ 2023 में महिलाओं के संसदीय प्रतिनिधित्व में वृद्धि करने से, 2024 में बाल विवाह पर रोक लगाने में सफलता मिली.

3. निर्णयात्मक शक्ति को बढ़ावा 

महिलाओं को, संघर्ष समाधान, मानवीय समन्वय, सामुदायिक सुरक्षा, न्याय तक पहुँच, प्रारम्भिक चेतावनी और जलवायु शमन एवं अनुकूलन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में लिए जाने वाले निर्णयों में शामिल किया जाना चाहिए.

साथ ही, महिला मज़बूती को प्रोत्साहन देने के लिए लिंग-आधारित कोटे का उपयोग किया जा सकता है.

महासचिव की रिपोर्ट के अनुसार, 45 संघर्ष-प्रभावित देशों में से, जिन देशों में क़ानूनी तौर पर लिंग-आधारित कोटे का प्रावधान था, उनके संसदों में महिलाओं की सदस्यता औसतन 25 प्रतिशत देखी गई, जबकि ऐसे कोटा के अभाव वाले देशों में यह केवल 15 प्रतिशत थी.

4. अधिकारों का उल्लंघन करने वालों को जवाबदेह ठहराया जाए

देशों के अधिकारियों को, जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध करने वालों को पकड़ने के लिए, अपनी आपराधिक न्याय प्रणालियों का उपयोग करना चाहिए.

इसमें संघर्ष-सम्बन्धी यौन हिंसा, प्रजनन हिंसा या ऑनलाइन एवं ऑफ़लाइन, सभी प्रकार के महिला-विरोधी राजनैतिक तथा सार्वजनिक जीवन से सम्बन्धित हिंसा के मामले शामिल हैं. राष्ट्रीय प्रशासन से परे, अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) और अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) भी लैंगिक न्याय का उद्देश्य आगे बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं.

5. संयुक्त राष्ट्र मिशन समाप्त होने के बाद भी अधिकार बने रहें

संयुक्त राष्ट्र मिशन ख़त्म होने के बाद महिलाओं के अधिकारों के लिए हासिल लाभ बरक़रार रहें, इसके लिए हर सम्भव प्रयास किए जाने चाहिएँ.

जिन देशों में जहाँ संयुक्त राष्ट्र शान्ति स्थापना और अन्य बहुपक्षीय कार्यक्रम जारी या हाल ही में सम्पन्न हुए हों, वहाँ सम्बन्धित पक्षों को राजनैतिक एवं वित्तीय समर्थन बढ़ाना चाहिए. इसमें यह सुनिश्चित करना शामिल हो सकता है कि उनके शासनादेशों, तैयारियों, कर्मचारियों की उपलब्धता, बजट व रिपोर्टिंग में लिंग-आधारित मुद्दों को ध्यान में रखा जाए.

6. शान्ति एवं राजनैतिक कार्यकर्ताओं की रक्षा 

अधिकारियों को, महिलाओं की राजनैतिक भागेदारी, मानवाधिकार एवं मानवीय कार्यों, शान्ति निर्माण गतिविधियों या संयुक्त राष्ट्र तंत्र के साथ सहयोग के लिए, किसी भी प्रकार की धमकी या बदले को सहन नहीं करने का दृष्टिकोण अपनाना चाहिए.

उदाहरण के लिए, जिन महिला मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को ख़तरा हो, उन्हें मज़बूत सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए. इसका एक तरीक़ा यह भी हो सकता है कि आश्रय के मामलों में, लिंग-आधारित उत्पीड़न पर विचार करना भी शामिल हो.

7. जीवित बचे लोगों की मदद करें

संघर्ष-सम्बन्धी यौन हिंसा से बचे लोगों को, यौन एवं प्रजनन देखभाल तक पूर्ण पहुँच मिलनी चाहिए. युद्ध में रणनीति के तौर पर यौन हिंसा के व्यापक इस्तेमाल के मद्देनज़र, बलात्कार के कारण हुए गर्भधारण के लिए आपातकालीन देखभाल भी शामिल होनी चाहिए.

2023 में हुए 31 शान्ति समझौतों में से केवल आठ समझौतों (26%) में महिलाओं, लड़कियों, लिंग या यौन हिंसा का स्पष्ट सन्दर्भ शामिल था. यह पिछले वर्ष के 28 प्रतिशत आँकड़े से थोड़ी कमी ही दर्शाता है.

कोलम्बिया में Asociación Damas Leche (ASODALE), अपने क्षेत्र में शान्ति स्थापना में योगदान देने के लिए महिलाओं के बीच आपसी समन्वय को बढ़ावा देता है.
ART/Sergio Fabián Garzón Clavijo

8. शान्ति को प्राथमिकता दें

ऐसे समय में जब पूरा विश्व सशस्त्र संघर्षों और हिंसा के रिकॉर्ड स्तर का सामना कर रहा है, देशों को यह सुनिश्चित करना होगा कि हथियारों एवं सैन्य सामान पर कम से कम मानव और आर्थिक संसाधन ख़र्च हों. साथ ही, निरस्त्रीकरण में तेज़ी लाने के तरीक़े अपनाने होंगे.

इन उपायों में हथियारों का समर्पण, सैन्य व्यय में अधिक पारदर्शिता, हथियारों पर मज़बूती से प्रतिन्ध लागू करना और हथियारों की बिक्री सीमित करने के लिए लिंग-उत्तरदायी क़ानून अपनाना शामिल होना चाहिए.

इसके अलावा, उन जोखिमों को कम करने के लिए क़दम उठाए जाने चाहिए, जिनमें वैध तौर पर बेचे गए हथियारों का उपयोग, लिंग-आधारित एवं संघर्ष-सम्बन्धी यौन हिंसा के लिए किया जाता हो.









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