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जाँए तो जाएँ कहाँ, ‘ग़ाज़ा बन चुका है क़ब्रिस्तान, बचने का कोई रास्ता नहीं’ | By Israeli bombardment, Gaza has been turned into a graveyard with no escape यूएन समाचार
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जाँए तो जाएँ कहाँ, ‘ग़ाज़ा बन चुका है क़ब्रिस्तान, बचने का कोई रास्ता नहीं’

ग़ाज़ा के कुछ इलाक़े में, यूएन एजेंसियाँ भोजन की ताज़ा ख़ुराकें वितरित कर पा रही हैं. मगर ग़ाज़ा एक क़ब्रिस्तान में तब्दील हो चुका है, जहाँ से बचने का कोई रास्ता नज़र नहीं आता है.
© WFP/Jonathan Dumont
ग़ाज़ा के कुछ इलाक़े में, यूएन एजेंसियाँ भोजन की ताज़ा ख़ुराकें वितरित कर पा रही हैं. मगर ग़ाज़ा एक क़ब्रिस्तान में तब्दील हो चुका है, जहाँ से बचने का कोई रास्ता नज़र नहीं आता है.

जाँए तो जाएँ कहाँ, ‘ग़ाज़ा बन चुका है क़ब्रिस्तान, बचने का कोई रास्ता नहीं’

मानवीय सहायता

संयुक्त राष्ट्र के मानवीय सहायताकर्ताओं ने आगाह करते हुए कहा है ग़ाज़ा में, सर्दियों की भारी बारिश से बदतर हुए भूख के हालात, दयनीय जीवन परिस्थितियाँ और निरन्तर जारी युद्ध, वहाँ के लोगों का जीवन लगातार ख़तरे में डाल रहे हैं, जिनके परिणामस्वरूप, ग़ाज़ा अब एक "क़ब्रिस्तान" बन गया है.

फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र एजेंसी (UNRWA) की वरिष्ठ आपदा अधिकारी लुइस वाटरिज ने कहा है, "दुनिया नहीं देख पा रही है कि इन लोगों के साथ क्या हो रहा है, इन हालात में परिवारों के लिए आश्रय पाना असम्भव है." 

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उन्होंने मध्य ग़ाज़ा के नुसीरात इलाक़े से जानकारी देते हुए बताया कि कड़ाके की सर्दी के दौरान रात भर बारिश हुई है जो शुक्रवार सुबह तक भी जारी रही.त

लुइस वॉटरिज ने ज़ोर देकर कहा कि "यहाँ सम्पूर्ण समाज अब क़ब्रिस्तान बन गया है... 20 लाख से अधिक लोग इस मुसीबत में फँस गए हैं. उनके बचने का कोई रास्ता नहीं है.”

“लोगों को बुनियादी जरूरतों से वंचित रहना पड़ रहा है और ऐसा लगता है कि यहाँ हर रास्ता (लोगों को) मौत की ओर ले जा रहा है."

संयुक्त राष्ट्र की बाल एजेंसी – UNICEF ने इस चेतावनी को दोहराते हुए ग़ाज़ा पट्टी में व्यापक और ख़तरनाक कुपोषण के स्तर को उजागर किया है.

यूनीसेफ़ की संचार विशेषज्ञ रोज़ालिया बोलेन ने कहा है, कि ग़ाज़ा में 96 प्रतिशत से अधिक महिलाएँ और बच्चे "अपनी बुनियादी पोषण सम्बन्धी ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं."

रोज़ालिया बोलेन ने, अम्मान से बताया कि ग़ाज़ा का सबसे उत्तरी हिस्सा 75 दिनों से लगभग पूरी तरह से इसराइली घेराबन्दी में है.

इस कारण, "10 सप्ताह से अधिक समय से" जरूरतमंद युवाओं तक मानवीय सहायता नहीं पहुँच सकी है.

जाँए तो जाएँ कहाँ, करें तो करें क्या

उन्होंने कहा, "पीड़ा केवल शारीरिक नहीं है, यह मनोवैज्ञानिक भी है... बच्चे सर्दी से त्रस्त हैं, वे भीगे हुए हैं, वे नंगे पैर हैं; मैं अनेक बच्चों को देखती हूँ जो अब भी गर्मियों के कपड़े पहनते हैं और खाना पकाने की गैस ख़त्म हो जाने के बाद, मैं बहुत से बच्चों को कचरे के ढेर में प्लास्टिक की तलाश करते हुए देखती हूँ जिसे वे (गर्माहट के लिए) जला सकें."

UNRWA की लुइस वॉटरिज ने ग़ाज़ा के उन लोगों की सहायता के लिए वहाँ सहायता पहुँचाने की महत्वपूर्ण आवश्यकता पर जोर दिया, जो इसराइली बमबारी के कारण, कई बार उजड़ चुके हैं और जिनके पास ख़ुद को मौसम से बचाने के लिए बहुत कम संसाधन उपलब्ध हैं.

लुइस वाटरिज ने ज़ोर देकर कहा, "इन परिस्थितियों में परिवारों के लिए आश्रय पाना असम्भव है. अधिकांश लोग साधारण कपड़े के तम्बुओं में रह रहे हैं, उनके पास पानी से बचाने वाले ढाँचे भी मौजूद नहीं हैं और यहाँ की 69 प्रतिशत इमारतें, क्षतिग्रस्त या नष्ट हो चुकी हैं. इन हालात से बचने के लिए लोगों के पास कोई आश्रय नहीं है."

इसराइली अधिकारियों द्वारा लगाई गई अनेक और निरन्तर सहायता बाधाओं का मतलब है कि मानवीय सहायता कर्मियों को आश्रय की तुलना में भोजन मुहैया कराने को प्राथमिकता देनी पड़ रही है, जिससे ग़ाज़ा के लोग हताश हो गए हैं और भोजन के लिए भगदड़ मचने का ख़तरा है.

लुइस वाटरिज ने कहा, "सर्दियों की निश्चितता ही एकमात्र ऐसी चीज़ है जिसके लिए संयुक्त राष्ट्र योजना बना पाया है. और फिर भी हमें अभी तक लोगों के लिए पर्याप्त आश्रय सामान की आपूर्ति करने की सुविधा नहीं मिली है, क्योंकि हमें भोजन को प्राथमिकता देनी पड़ी है. रोटी के एक टुकड़े के इन्तज़ार में, महिलाओं को कुचलकर मार दिया गया है."

संयुक्त राष्ट्र सहायता समन्वय कार्यालय OCHA ने गुरूवार को बताया कि इसराइली अधिकारियों ने "उत्तरी ग़ाज़ा गवर्नरेट के इसराइली घेराबन्दी वाले क्षेत्रों में भोजन और पानी पहुँचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र के एक और अनुरोध को अस्वीकार कर दिया है. परिणामस्वरूप, बेत हनून, बेत लाहिया और जबाल्या के कुछ हिस्सों में फ़लस्तीनी लोग जीवन रक्षक सहायता से वंचित हैं."









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